नैयायिकों ने अन्धकार के दशम द्रव्यत्व का खण्डन किया है । उनकी अन्तिम युक्ति है कि तम में यद्यपि कालारूप दिखता है चलनक्रिया की प्रतीति भी होती है तथापि रूपवत्ता आदि की प्रतीति भ्रान्तिमात्र है ;क्योंकि रूपवान् द्रव्य घट पटादि के प्रत्यक्षहेतु हमें नेत्र के साथ आलोक भी चाहिए ;क्योंकि अन्धकार मे वे दिखते नही ।
अब अन्धकार को नीलरूपवान् द्रव्य माने तो प्रकाश का सम्बन्ध नेत्र के साथ होने पर उसे दिखना चाहिए । पर दिखता नही अतः नीलरूपवत्ता की प्रतीति भ्रम मात्र है ।
किन्तु नैयायिकों का यह कथन ठीक नही ;क्योंकि आलोक जो स्वयं तेजःस्वरूप वे मानते हैं वह भी रूपवान् द्रव्य है किन्तु उसके प्रत्यक्ष में नेत्र को आलोक के सहयोग की जैसे आवश्यकता नही है,वैसे ही अन्धकार के विषय मे भी क्यों न मान लें।
यहां तार्किकों का जो प्रत्यक्ष मे आलोकसंयोग सहकारी कारण माना गया था वह खण्डित हो गया । अन्धकार में नीलवत्ता की प्रतीति भ्रान्ति नही कह सकते ;क्योंकि भ्रान्ति की निवृत्ति बाद में देखी जाती है ,रज्जु सर्पादि स्थलों में ।
पर आज तक कोई भी नैयायिक यह नही अनुभव कर सका कि अन्धकार काला नही है। अन्ततः नैयायिक तम को तेज का अभाव माने। तम का ही अभाव तेज को क्यों न माने ?
इस पर ये लोग कहते हैं कि तेज में उष्णता की प्रतीति होती है । वह तेजोऽभावरूप तम में नही रह सकती;क्योंकि उष्णता स्पर्शात्मक गुण है और गुण का आधार द्रव्य ही होता है,अभाव नहीं । अतः उसके लिए आश्रयरूप में अन्य द्रव्य को स्वीकार करना पड़ेगा। इसलिए प्रत्यक्ष उष्णस्पर्शका आश्रय तेज है और वह द्रव्य है तमोऽभाव नही ।
यहां मेरी शंका का उत्तर विद्वज्जन देने की कृपा करें |
शंका
जब नैयायिक लोग तम को तेजोऽभावरूप मानते हैं तब उसमें प्रत्यक्षतः अनुभूत काला रूप जो कि एक गुण है वह उस तेजोऽभाव रूप अन्धकार में कैसे रहेगा;क्योंकि उष्णस्पर्श की भांति नीलरूपात्मक गुण का आश्रय भी द्रव्य ही होता है अभाव नहीं। अतः नीलरूप का आश्रय तम दशम द्रव्य है , तेजोऽभाव नही ।
सुधीजन इसका उत्तर करें और सत्य तर्क है तो अन्धकार को दशम द्रव्य स्वीकार करें ।
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक
