आठवीं महाशक्ति भगवती महागौरी

माँ दुर्गा की आठवीं महाशक्ति भगवती महागौरी

 

  यह जगज्जननी भगवती पार्वती का ही एक दिव्य स्वरूप है जो उन्हें कठोर तपश्चर्या से प्राप्त हुआ था | शुम्भ और निशुम्भ नामक दैत्यों ने जब अपनी उग्र तपस्या से ब्रह्मा जी से वर माँगा तो यह कहा कि हम लोग पुरुषों से अवध्य हो जाएँ और हमारा वध रणभूमि में  वही  कन्या कर सके जो किसी स्त्री की केंचुल ( देह के ऊपर का पूरा चमड़ा केंचुल कहा जाता है जिसे सर्प या सर्पिणी ही छोड़ते हैं, पुरुष या स्त्री ऐसा नही कर सकती—ऐसा सोचकर उन दोनों ने प्रकारांतर से अमरत्व ही मांग लिया था ) से समुत्पन्न हो, जिसे किसी पुरुष ने क्रीडा के समय स्पर्श न किया हो और हम लोगों का उसके प्रति कामभाव जागृत हो जाय ।

            इस वर को प्राप्त करके इन्होने देवलोक पर विजय प्राप्त कर ली , देवता दर दर भटकने लगे | तब ब्रह्मा जी ने भगवान् शंकर से प्रार्थना की कि आप ऐसी लीला करें कि किसी प्रकार शैलजा को अपने काले रूप को परिवर्तित करने की तीव्र उत्कंठा हो जाय | और वे इसके लिए तप में संलग्न हो जांय | बस फिर क्या था एक दिन परिहास करते हुए शिवजी ने  पार्वती जी को “काली” कहकर चिढ़ा दिया । अब तो मैं गौर वर्ण प्राप्त करके ही रहूंगी –ऐसा दृढ निश्चय जगदम्बा ने करके तप करने की ठान ली ।

               वैसे वे संकल्प मात्र से गौर वर्ण अपना बना सकतीं थीं पर इससे वह सब नही होता जिससे शुम्भ निशुम्भ रणभूमि में मारे जाते | अत एव भगवान् चन्द्रचूड ने इन्हें गौतमाश्रम जाकर ब्रह्मा जी को तप से संतुष्ट करने की आज्ञा दी | और इन्होने अपने तप के फलस्वरूप जब विरंचि से वर माँगा तो इनके शरीर का ऊपर वाला चर्म अलग हो गया और ये गौरी क्या महागौरी हो गयीं |( अलग हुए चर्म से एक अयोनिजा कन्या का प्राकट्य हुआ जिसका नाम कौशिकी पड़ा जो शुम्भ निशुम्भ को रणभूमि में मृत्यु के घाट उतार दी ।)

             परिधान और आयुध –इनके वस्त्र एवं आभूषण आदि सभी श्वेत हैं। भगवती महागौरी बैल के पीठ पर विराजमान हैं। “श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः । महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ” ।। इनकी चार भुजाएं हैं। जिनमें ऊपर का दांया हाथ अभय-मुद्रा में तथा  नीचे के दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शांत है ।

          इनकी भक्ति अमोघ और अत्यधिक फलदायिनी है। इनकी उपासना से प्राणी पूर्वार्जित पुण्यपापरूपी कृष्णता से मुक्त होकर जाज्वल्यमान स्वरूप प्राप्त कर लेता है, अर्थात भवबन्धन से विनिर्मुक्त हो जाता है | माँ आपके श्रीचरणों में १ पद्यपुष्प समर्पित है–                                                                                      

अम्ब ते पदं वृतं  मुनीन्द्रवृन्दवन्दितं, चन्द्रचूडचुम्बितं गवेन्द्रपृष्ठमण्डितम् |

कालदण्डदण्डितं महेशपाशखण्डितं, ज्ञानदेषु पण्डितं  जगत्फ़णीन्द्रतुण्डितम् ||

#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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