“आह्लादकारिणी तृतीय महाशक्ति भगवती माँ चन्द्रघण्टा”
माँ चन्द्रघण्टा
जगज्जननी भगवती दुर्गा की तृतीय शक्ति का नाम चन्द्रघण्टा है । नवरात्र के तीसरे दिन इस स्वरूप की
पूजा की जाती है । माँ का यह स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है । माँ चन्द्रघण्टा अपने भक्तों को सभी प्रकार
की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं ।
इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, इनके दस हाथ हैं। दसों हाथों में खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं।
इनका वाहन सिंह है। इनकी कृपा से साधक को अलौकिक दर्शन होते हैं, दिव्य सुगन्ध और विविध दिव्य ध्वनियाँ सुनायी देती हैं ।
ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं । माँ चन्द्रघण्टा की अराधना सद्य: फलदायी है । इनका वाहन
सिंह है अत: इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है । ये अपने अपने भक्तों की समस्त बाधाओं
से रक्षा करती है । दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने के बाद भी इनका स्वरूप दर्शक और अराधक के लिए अत्यंत आह्लाद से परिपूर्ण रहता है ।
“चन्द्रघण्टा ” नाम पड़ने का कारण”
मार्कण्डेयपुराणस्थ देवीकवच में “तृतीयं चन्द्रघण्टेति” की व्याख्या में यह निर्णय किया गया कि इनका नाम
चन्द्रघण्टा क्यों पड़ा ?
प्रथम कारण यह कि “ इनके हाथ में विद्यमान घंटे में चन्द्र है-
चन्द्रघण्टेति –”चन्द्रो हस्तगतायां घण्टायां यस्याः”
या चन्द्र के सदृश निर्मल इनका घण्टा है -”चन्द्रवन्निर्मला वा घण्टा यस्याः” .
किन्तु इन अर्थों में कोई प्रमाण न होने से असंतुष्ट गुप्तवतीटीकाकार भास्करराय “रहस्यागम”के एक श्लोक को प्रस्तुत करते हुए इनके चन्द्रघण्टा नाम पड़ने का कारण बतलाते हैं कि
“आह्लादकारिणी देवी चन्द्रघण्टेति कीर्तिता”इस वचन से आह्लादित करने वाली भगवती को चन्द्रघण्टा कहा गया
है । आह्लाद तो भगवती के सभी स्वरूपों से भक्तों को प्राप्त होता है । किन्तु माँ चन्द्रघण्टा की उपासना सद्यः भक्त
को आह्लाद का अनुभव कराती है ।
इसलिए इनका यह विशेष गुण होने से इनका “चन्द्रघण्टा” नाम सार्थक होता है । और भक्तों को यह अनुभव में आ चुका है । जिन्हें इस तथ्य का अनुभव करना हो वे महानुभाव इनकी उपासना से इसका अनुभव कर सकते हैं ।
चन्द्र से भी अधिक आह्लादित करने वाली देवी को चन्द्रघण्टा कहते हैं, अर्थात जिन भगवती में चन्द्रमा से भी
अधिक लावण्य होने से आह्लादकता हो किंवा जो चन्द्र को भी अपने आह्लादकारी स्वाभिमान से चुनौती दे रही
हों वे चन्द्रघण्टा हैं –
“चन्द्रं घण्टयति प्रतिवादितया भाषते स्वस्याह्लादकारित्वाभिमानेनेति चन्द्रघण्टा” .
( अर्थात् रे कलंकित चन्द्र तू मेरे समक्ष लोगों को क्या आह्लादित करेगा । इस प्रकार सगर्व प्रतिवादी की भाँति मानों चन्द्र से कह रहीं हों । किन्तु वात्सल्मयी जगज्जननी ऐसा नहीं कह सकतीं । इसलिए इस व्युत्पत्ति का व्यंग्यार्थ प्रकट कर रहे हैं । ) चन्द्रापेक्षयाप्यतिशयेन लावण्यवतीत्यर्थः । जो अनन्त चन्द्रों की अपेक्षा भी अधिक लावण्यवती हों उन पराम्बा
भगवती को “चन्द्रघण्टा” नाम से अभिहित किया जाता है ।
घण्टा शब्द की मूल “घटि भाषार्थः” बोलने अर्थ वाली इदित् चुरादि घट धातु है जिससे “नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः” सूत्र से अच् प्रत्यय करके पूर्वोक्त व्युत्पत्ति में घण्टा शब्द बना है |
प्रायः लोग यही कहते हैं कि ” इनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी लिए इन्हे चन्द्रघण्टा कहा
जाता है। किन्तु यह कथन भ्रान्तिमूलक है ।
यदि कहें कि
“वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । सिंहारूढां चंद्रघंटां यशस्वनीम् ।।मणिपुरस्थितां तृतीयदुर्गां त्रिनेत्राम् ।।”
वचन ही इसमें प्रमाण है । तो मैं उस कथयिता से पूछूंगा कि तब भगवती ब्रह्मचारिणी आदि को भी चन्द्रघण्टा ही
कहना चाहिये क्योंकि उनकी स्तुति में भी यह पंक्ति आई है-
“वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । जपमालाकमण्डलुधरां ब्रह्मचारिणीं शुभाम् ।।”
अतः इनके मस्तक में चन्द्र के समान घंटा होने में कोई प्रमाण नही है । और जो श्लोक इनके लिए कहा गया है
उसमें “चन्द्रार्धकृतशेखराम्” है और अर्धचन्द्र घंटे के समान होता नही , घंटे के सामान गोल तो पूर्ण चन्द्र ही होता
है । जिसे इनके मस्तक में नही बताया गया । विद्वज्जन यदि मेरे प्रमाणों से विरुद्ध कोई शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत करें
तो अतिकृपा होगी ।
ध्यान से लाभ
भगवती चन्द्रघण्टा का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से मणिपुर चक्र जागृत हो जाता है और सभी कष्टों से
मुक्ति मिलती है । चूंकि इनके नाम से ही आह्लादकत्व गुण झलकता है इसलिए इनका उपासक जहाँ भी होगा वहां इतनी प्रसन्नता होगी कि लोग आपसी वैरभाव भूलकर मित्रवत व्यवहार करेंगे जिसे आज की भाषा में “भाई चारे का व्यवहार”
कहा जाता है । जो आज के भीषण युग में अत्यावश्यक है ।
जय मातः चन्द्रघण्टे
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar