- एकादशमुख हनुमत्कवच के पुरश्चरण की विधि-
- इस कवच के ४०००० पाठ का विधान है जो “चत्वारिंशत्सहस्राणि पठेच्छुद्धात्मना नरः” श्लोक में लिखा है । प्रतिदिन यदि ४०० पाठ कर सकें तो १००दिन में इसकी पाठसंख्या पूर्ण हो जायेगी । अथवा जितनी संख्या में पाठ की सामर्थ्य हो उतना ही पाठ प्रतिदिन करें । घटाना या बढ़ाना विघ्नों को आमन्त्रण देना है । दिशा या स्थान का परिवर्तन भी न करें ।
- तत्पश्चात दशांश हवन करना चाहिए । हवन के लिए संध्यापरायण विप्रों का ही चयन करें । वे विद्वान् विधि में कोई कमी न रखें । तर्पण, मार्जन के बाद विप्र आदि को भोजन अवश्य करायें । ब्रह्मचारी वटुओं को भोजन कराने का विशेष महत्त्व है । स्वयं साधक भी भोजन दान मान से उन्हें सन्तुष्ट करे । यदि असामर्थ्यं हो तो स्वयं भी दशांश हवन आदि करें पर विप्रभोज तो अनिवार्य ही है । अथवा कार्यकर्ताओं की विश्वसनीयता में सन्देह होने पर स्वयं ही करें तो अत्युत्तम है ।
हवन का कार्य वृहद् होने से दूसरों की सहायता अपेक्षित है । सामर्थ्यशाली को प्रभु का आश्रय लेकर स्वयं ही सचेष्ट होना चाहिए ।
हवन- प्रथम श्लोक के अन्त में हनुमान् जी के मूलमन्त्र से आहुति डालें । यही क्रम सभी श्लोकों में चलेगा । द्वितीय पाठ में ओं स्फ्रें बीजं से ही आरम्भ करके प्रत्येक श्लोक के अन्त में पूर्ववत् ही हवन करना चाहिए ।
सावधानी-इस हवनकाल में विप्रों को ब्रह्मचर्य का पूर्णतया पालन अनिवार्य है,नहीं तो वे पागल भी हो सकते हैं और साधक को असफलता । गुटखा,तम्बाकू आदि के उपासक इसमें नहीं होना चाहिए । मार्जन यजमान अर्थात पाठकर्ता का ही किया जाना चाहिए ।
इसका प्रयोग यदि किसी साधक या विप्र अथवा वैष्णव पर उसे मारने के लिए या किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाने के लिए किया गया तो निस्सन्देह भारी हानि उठानी पड़ेगी । जो वैसी है । उसे तो इसके साधक के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा । इसे साधना में निरत साधक को ही बताना चाहिए ।
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक
