»»»»»»»»» केनोपनिषद्,मन्त्र 3, जगत् ब्रह्म नहीं है । ««««««
यद्वाचानभ्युदितं येन वागभ्युद्यते । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ।। 3 ..
पूर्वोक्त मन्त्रमें यह बतलाया गया कि वह परमात्मा मन, वाणी आदि सभी का प्रेरक है किन्तु अब इन मन्त्रों में बतलाया जायेगा इनमें कोई भी उसे पूर्णतया जानने की सामर्थ्य नहीं रखते ।
यद् –जो ब्रह्म, वाचा –वेदवाणी से , से भी ,अनभ्युदितम् — पूर्ण तया नहीं कहा जा सकता । फिर अन्य लौकिक वाणियों के द्वारा उसका निरूपण करने की तो बात ही नही उठती । और, येन —जिसके द्वारा प्रेरित होकर,वाग् –वाणी, अभ्युद्यते– प्राणियों द्वारा उच्चरित होती है ।
तदेव — वही मन आदि का प्रेरक, ब्रह्म–परमात्मा को , हे ब्रह्मजिज्ञासु शिष्य, विद्धि –तुम जानो ।
यद् –जो, इदं –इस दृश्यमान जगत् अर्थात् ब्रह्मलोक पर्यन्त किसी की भी ,उपासते –अनेक कामनाओं से आकुलचित्त वाले जीव उपासना करते हैं ।
इदं –यह दृश्यमान जगत् ,न –ब्रह्म नही है ।
अर्थात् नश्वर जगत् से अविनाशी सच्चिदानन्दघन सर्वप्रेरक परमात्मा भिन्न है । उपासना के अयोग्य इस जगत् — मकान दुकान सगे सम्बन्धी आदि को ही अपना सब कुछ मानकर उसमें आसक्त होना बन्धनप्रद है ।
अतः इन सबसे विलक्षण ब्रह्मतत्त्व ही सबका उपास्य है ।
»»»»»»»»जय श्रीराम««««««
»»»»»»आचार्य सियारामदास नैयायिक«««««««

Gaurav Sharma, Haridwar