धनतेरस का आध्यात्मिक रहस्य

धन की परिभाषा सामान्यतः: पैसे से करते हैं । पर धन वर्ण और आश्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार का है । ब्रह्मचारी के लिए गुरुसेवा और स्वाध्याय, गृहस्थ के लिए फूला फला परिवार, वानप्रस्थ के लिए आवश्यक वन्य फल, और एक सन्न्यासी के लिए ब्रह्मचिन्तन ही उसका धन है ।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि “चरित्र ही सबसे बड़ा धन है ।”
भक्त का धन तो उसके आराध्य के चरणकमल ही हैं –
“धनं मदीयं तव पादपङ्कजम्”
एकादश (११) इन्द्रियों के साथ जीव का परमात्मा के साथ सम्बन्ध हुआ कि समझें “धनतेरस” हो गयी । यह ऐसी धनतेरस होगी कि बाद में किसी धन की कामना नहीं होगी । और इसके लिए केवल श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु की शरण ग्रहण करना है । जिसके लिए कोई मुहूर्त नहीं चाहिए ।
“यदहरेव ब्रजेत् तदहरेव प्रब्रजेत्”
जिस दिन वैराग्य हो जाय । उसी दिन सद्गुरु का समाश्रयण कर लें ।
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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