धर्मशास्त्र- शौच एवं धनशुद्धि

सभी पवित्रतायें व्यर्थ हैं यदि धन का उपार्जन शुद्धता से नहीं किया गया —

“सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम् ।

योSर्थे शुचिर्हि स शुचिर्न मृद्वारिशुचि: शुचि: ।।

–मनुस्मृति-५/१०६

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