धर्म उसे कहते हैं जिससे किसी समाज राष्ट्र या समग्र विश्व को धारण किया जाता है –धरति मानवं –समाजं-राष्ट्रं –समग्रं विश्वं वा इति धर्मः | धारणार्थक धृ धातु से “ अर्तिस्तुसुहुसृधृक्षिक्षुभायावापदियक्षिनीभ्यो मन्—उ० -१/१४०, इस सूत्र द्वारा कर्त्रर्थ में मन् प्रत्यय होकर धर्म शब्द बना है | इसके अंतर्गत अपने जीवन से लेकर विश्व पर्यंत को धारण करने वाले वे सभी नियम ,आचरण, कर्तव्य और संविधान आयेंगे जिससे सब कुछ व्यवस्थित होता है | इहलोक से परलोक तथा मोक्ष तक प्राप्त कराने वाले सभी नियम एवं क्रियाएं भी इसके अन्दर समाहित हैं | ध्रियते प्राणिभिरिति धर्मः—यहाँ मन् प्रत्यय कर्म में होकर धर्म शब्द बना है–जो प्राणियों के द्वारा सुव्यस्थित जीवन बिताने के लिए अथवा मोक्ष पर्यंत किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए धारण किया जाय उसे धर्म कहते हैं | वैशेषिकदर्शनकार महर्षि कणाद ने इसे ही धर्म कहा है “ यतोsभ्युदयनिःश्रेयस्सिद्धिः स धर्मः “ जिससे अभ्युदय हो मोक्ष की प्राप्ति हो उसे धर्म कहते हैं | धर्म शब्द का अर्थ पूर्वोक्त व्युत्पत्ति के अनुसार केवल प्रसिद्ध पूजात्मक कर्मकाण्ड ही नही अपितु पूर्वोक्त सभी नियमों, आचरणों, कर्तव्यों तथा संविधान तक को अपने में समेटे हुए है |जिसके अंतर्गत हमारे सभी सत्कर्मों एवं कर्तव्यों का समावेश है | परिवार ,समाज ,राष्ट्र और विश्व के प्रति तथा मोक्ष पूर्व तक धारण अर्थात् किये जाने वाले सभी कर्तव्य इसके अन्दर समाहित हैं | इसलिए विश्वकोष में इसे पुण्य, न्याय, स्वभाव, आचार और यज्ञ आदि अर्थों में परिभाषित किया गया ––
“धर्मः पुण्ये यमे न्याये स्वभावाचारयोः क्रतौ“ |
धर्म की इस व्यापक परिभाषा को न समझने वाले मूर्खों ने इसे पलायनवाद की संज्ञा तक दे डाली | इसमें भी २ विभाग हैं –१—सामान्य धर्म, २—विशेष धर्म | १—सामान्य धर्म—जो सबके लिए मान्य है उसे सामान्य धर्म कहते हैं जैसे—अहिंसा, सत्य बोलना,चोरी न करना,पवित्रता और इन्द्रियों का संयम –ये सभी मानवों के लिए आवश्यक धर्म है —
अहिन्सा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः | एतं सामासिकं धर्मं चातुर्वर्ण्येsब्रवीन्मनुः ||–मनुस्मृति-१०/६३,
आज इस राक्षसी सरकार ने जगह जगह बूचडखाने खोलकर गोहत्या को बढ़ावा देकर, बड़े बड़े घोटालों द्वारा इस सामान्य धर्म का नाश कर दिया है |ये धर्मनिर्पेक्ष लोग– हिंसा, झूठ बोलना, चोरी करना और इन्द्रियलम्पटता को अपनाये हुए महाराक्षस हैं |
विशेष धर्म—प्रत्येक समाज,वर्ण,राष्ट्र इन सबका विशेष धर्म होता है | विशेष धर्म जिनके हैं वे उन्ही को मान्य हैं ,सबको नहीं |जैसे वेदाध्ययन ,व्यापार , कृषि आदि | इन्हें ही शास्त्र की भाषा में वर्णाश्रम धर्म कहते हैं | ऐसे ही सभी पार्टियों का भी विशेष धर्म है | किसी का धर्म है मुस्लिमतुष्टीकरण, कायरता और भारतीय सभ्यता तथा उसके प्रतीक चिह्नों का विनाश | तो दूसरे का इसके विपरीत प्रयास और हिन्दूहितों की रक्षा |हम यहाँ केवल स्वर्ग आदि अदृष्ट फलों की प्राप्ति कराने वाले धर्म का स्वरूप लिखने नही बैठे है l
अपितु “स्वधर्मे निधनं श्रेयः “—गीता—३/३५, “कर्म नावैषि यत्परम् | तत्कर्म हरितोषं यत् “—भागवत—४/४९, “ कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः “—गीता—३/२०, “ ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः “—श्वेताश्वतर–१/८, “ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया “—गीता –८/२२, “ अयं तु परमो धर्मो यद्योगेनात्मदर्शनम् “—याज्ञवल्क्यस्मृति—आचाराध्याय-उपोद्धातप्रकरण -८, जैसे वचनों को भी दृष्टि में रखकर विचार कर रहे हैं कि लोग अपने कर्तव्यों को धर्म समझें और अकर्मण्यता के पुजारी न बन जांय |
सम्प्रदाय – सम् ,प्र उपसर्ग पूर्वक दानार्थक दा धातु से सम्प्रदानम् –संप्रदायः ऐसी व्युत्पत्ति करके “ भावे “—३/३/१८, सूत्र से भाव में घञ प्रत्यय होकर “ आतो युक् चिण्कृतोः“—७/३/३३, से युक् का आगम होने सेसम्प्रदाय शब्द बना है जिसकाअर्थ है—गुरुपरम्परा से प्राप्त सदुपदेश | यह सम्प्रदाय शब्द वेद के पर्याय के रूप में ६००—A.D.तक प्रयुक्त था |यह बात ६००—A.D. के सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् अमरसिंह भी अपने कोष में लिखते हैं—“ अथाम्नायः सम्प्रदायः—अमरकोष– ३/२.७, यहाँ आम्नाय का अर्थ वेद है |देखें—“ श्रुतिः स्त्री वेद आम्नायः“—अमरकोष—१/६/३, |
जो सदुपदेश गुरुपरम्परा से प्राप्त होते आये उन्ही का नाम सम्प्रदाय आम्नाय और वेद ६०० A.D. तक था—यह तथ्य कोष को प्रमाण रूप में प्रस्तुत करके सिद्ध की गयी | वेदवत् सम्मानप्राप्त “ सम्प्रदाय “ शब्द को कुछ समय से मूर्खों ने विकृत प्रयोग करके ऐसी स्थिति में पंहुचा दिया कि आज सुशिक्षित व्यक्ति “ आप किस सम्प्रदाय से हैं ? “—पूंछने पर बतलाने में लज्जा का अनुभव करता है |
इसलिए धर्म और सम्प्रदाय के वास्तविक अर्थ को न समझकर संविधाननिर्माताओं तक ने जो भूल की है उसका फल आज तक सम्पूर्ण हिन्दू समाज ही नहीं अपितु पूरा देश भुगत रहा है | और आज उसी मूर्खता को ढोते आ रहे ये गधे राष्ट्र को धर्मनिरपेक्ष तथा हिन्दुओं को साम्प्रदायिक कहते हैं |
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