हनुमत्सहस्रनाम में हनुमान् जी का एक नाम आया है –”नागकन्याभयध्वंसी”=नागकन्या के भय को नष्ट करने वाले मारुति । इससे यह सिद्ध होता है कि नारियों को भी हनुमन्मन्त्र के जप में अधिकार है । पार्वती जी तथा अगस्त्यभार्या लोपामुद्रा जैसी महिलायें संहिता एवं तन्त्रग्रन्थों में हनुमदुपासिका के रूप में समुपवर्णित हैं ।
किम्पुरुषवर्ष में गन्धर्व आर्ष्टिषेण जो हनुमान् जी को विविध प्रकार के संगीतमय रामचरित सुनाते हैं । उनके अनुज सुषेण प्रतिदिन सर्वोपचार से आञ्जनेय की पूजा करते थे । हनुमदाराधन से वे उठे ही थे कि उनके समीप नागलोक की साम्राज्ञी नागकन्या एक रक्तरोम नामक राक्षस से पीड़ित होकर अपनी मुक्तिहेतु पहुँची ।और प्रणाम करके बोली ।गन्धर्वप्रवर ! नागलोक में यक्ष किन्नर, गन्धर्व,सिद्ध, विद्याधर, सुर एवं राक्षसों से भी अपराजेय रक्तरोम नामक राक्षस आकर नागों को पीड़ित कर रहा है और मुझे देखकर कामबाणों से आक्रान्त वह राक्षस पकड़ने की चेष्टा करने लगा ।
मैंने उसके कुभाव को देखा और भयाक्रान्त होकर आपकी शरण में आयी हूँ । आप हनुमान् जी के परम भक्त हैं ।
मुझे उस दुष्ट राक्षस से मुक्ति का कोई उपाय बतलायें ।जिससे समग्र नागलोक के साथ मैं उस दुष्ट निशाचर से भयमुक्त हो जाऊँ ।
सुषेण उसकी मन:स्थिति को देखकर द्रवीभूत हो गये और बोले – पुत्रि ! मैं तुम्हें हनुमान् जी का एक मन्त्र बतला रहा हूँ । उस मन्त्र के जप से तुम महाबली मारुति की कृपा प्राप्त करोगी और सर्वथा भयमुक्त हो जाओगी । ऐसा कहकर गन्धर्वश्रेष्ठ सुषेण ने उसे शुक्लसंज्ञक एक मन्त्र प्रदान किया–
” श्रीमन्निरन्तरकरुणामृतसारवर्षिणं, पिंगलाक्षं,—श्रीरामचन्द्रचरणारविन्दसन्धितहृदयारविन्दं-अखिलकल्याणगुणवन्तं श्रीहनुमन्तमुपास्महे ॥-परासरसंहिता, पटल-३२, मन्त्र -३२,
इस मालामन्त्र के जपप्रभाव से केशरीनन्दन प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये । पवनात्मज ने उससे पूछा — पुत्रि! तुम क्या चाहती हो ? नागकन्या ने रक्तरोम के महान् उपद्रवों से मुक्ति माँगी । हनुमान् जी किम्पुरुषवर्ष से नागकन्या के साथ नागलोक पहुँचे ।वहाँ उन्होंने रक्तरोम राक्षस के भीषण अत्याचारों को देखा । कपिवर ने पर्वताकार प्रचण्ड पराक्रमी उस राक्षस को युद्ध के लिए ललकारा । विलक्षण युद्ध करके उसे अपनी पूछ से बाँध लिया तथा
अपने प्रचण्ड भुजदण्डों से उसे पीस डाला । नागकन्या भयमुक्त हुई ।
यक्ष, पन्नग, गन्धर्व और नारद जैसे देवर्षियों ने अञ्जनानन्दन की स्तुति की । हनुमान् जी ने उस नागकन्या को अभीष्ट वर देकर पुन: उसके पद पर उसे प्रतिष्ठित कर दिया । और गन्धमादन पर्वत पर चले गये ।
यह वृत्तान्त श्रीपरासर संहिता के बत्तीसवें पटल में उपवर्णित है ।
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar