श्रीनृसिंहस्तुति
जय जय परम उग्र भगवान।
कनककशिपुरिपुदलनहित प्रकटे वीर महान ॥1॥
जय जय परम उग्र भगवान ।
हे परम उग्र भगवान् आपकी जय हो जय हो | आप हिरण्यकशिपु जैसे भयंकर शत्रु के नाश हेतु एक महान वीर प्रकट हुए ||१|| आपकी जय हो जय हो |
खम्भविपाटक कण कण व्यापक महाविष्णु तोहि जान ।
ज्वलत्तेज सर्वत्र लखत सुर महाप्रचण्ड कृशान ॥2॥
जय जय परम उग्र भगवान ॥
कण कण में व्यापक और खम्भे को विदीर्ण करने वाले आप महाविष्णु हैं—ऐसा महर्षि लोग जानते
हैं | देवगण आपको सर्वत्र प्रज्वलित तेज रूप में महा प्रचण्ड प्रलयकालिक अग्नि जैसे देख रहे थे ||
हे परम उग्र भगवान आपकी जय हो जय हो |
दितिसुतदानवमूलनिकृन्तन जय नरसिंह महान।
भीषण वपु लखि भीत भये सुर नभ टकरान विमान ॥3॥
जय जय परम उग्र भगवान ।
दैत्य और दानवों का समूलोच्छेदन करने वाले हे महान नरसिंह भगवान आपकी जय हो |
आपके भीषण शरीर को देखकर देवता भयभीत हो गए और उनका विमान आकाश में टकराने लगा |
हे परम उग्र भगवान आपकी जय हो जय हो |
महा अभद्र विभेदक हे हरि तुम सम भद्र न आन ।
मृत्युमृत्यु निज पादाम्बुज में भृत्यनमन लो मान ॥4॥
जय जय परम उग्र भगवान ।
हे महा अमंगल को नष्ट करने वाले भगवन् ! आपके समान मंगलस्वरूप दूसरा कोई भी नही है |
हे मृत्युओं के मृत्यु अर्थात् मृत्युओं का संहार करने वाले प्रभो आप अपने चरणकमल में इस सेवक
का नमन स्वीकार कर लो ||४|| हे परम उग्र भगवान आपकी जय हो जय हो |
बगलादिक सब कृत्याघालक जनपालक तोहिं जान ।
सियाराम शरणागत भा अब हरि राखहु तुम आन ॥5॥
जय जय परम उग्र भगवान ।
बागला,भैरव आदि देवी देवताओं के मन्त्र, तन्त्र और यन्त्र से चलने वाली सभी कृत्याओं ( मूठ आदि ) को आप विध्वस्त करने वाले तथा अपने भक्त जनों का पालन करने वाले हैं—ऐसा जानकर यह सियारामदास आपके शरणागत हुआ है | अतः हे नरसिंह भगवान अब आप मेरी लाज रख लीजिये |
साधक दृष्टि से—मैं माया पिशाचिनी से ग्रस्त होकर संसारसिन्धु में डूब रहा हूँ अतः आप मुझे अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित कर दीजिये | जिससे में भवबंधन से छूट जाऊं ||५||
हे परम उग्र भगवान आपकी जय हो जय हो |
यह स्तुति आज नृसिंहजयन्ती के अवसर पर “सवाईमाधोपुर” के समीपवर्ती नृसिंहमन्दिर के एक सन्त श्रीश्यामदास जी की प्रेरणा से रची गयी है । जिसका आधार यह नृसिंहमन्त्र है–
”उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥”
जय श्रीनृसिंह
जयतु भारतम्,जयतु संस्कृतम्
आचार्य सियारामदास नैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar