पुरुषसूक्त मन्त्र-१ की विशद हिन्दी व्याख्या

पुरुषसूक्त मन्त्र-१ की विशद हिन्दी व्याख्या

“पुरुषसूक्त” मन्त्र-१ की विशद हिन्दी व्याख्या–आचार्य सियारामदास नैयायिक

हरिः ओम्

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं सर्वतस्पृत्त्वात्यतिष्ठद्दशाड़्गुलम् । । 1 .
यहां परमात्मा के स्वरूप का वर्णन है । सहस्रशीर्षा–१०००शिर, सहस्राक्षः–आँख, सहस्रपात्, १०००पैर वाला पुरुष है । वह भूमि को व्याप्त करके १० अंगुल मे रहता है ।

शंका

इस अर्थ के अनुसार परमात्मा काना लंगड़ा आदि सिद्ध हो रहा है । और १० अंगुल मे बिल्ली भी नही रह सकती फिर वह कैसे रहेगा ?

उत्तर

सम्पूर्ण शरीर रूपी पुरी में शयन करने के कारण भगवानन् को परुष कहा जाता है –

शरीराख्ये सर्वस्मिन् पुरि शेते इति पुरुषः । श को षकारादेश हुआ है । –

पुरमाक्रम्य सकलं शेते यस्मान् महाप्रभुः । तस्मात् पुरुष इत्येष प्रोच्यते तत्वचिन्तकैः ।। -विष्णुस्मृति।
असौ रामो महाबाहुरतिमानुषचेष्टया । तेजो महत्तया वाऽपि संस्मारयति पूरुषम् । ।-उत्तररामायणम्

श्रीराम को पुरुषः शतशीर्षः सहस्रचरणः सहस्रदृक् आदि शब्दों से कहा गया है-

वाल्मीकिरामायण- यु.का. सर्ग-११७/१५-१८-२१,

सहस्र शब्द यहां अनन्त का वाचक है । दश शत और सहस्र शब्द अपने अर्थ को तो प्रस्तुत करते ही है फिर भी ये अनन्त अर्थ मे प्रयुक्त होते हैं –

दशं शतं सहस्रं च सर्वमानन्त्यवाचकम् ।

       अतः भगवान् के अनन्त शिर अनन्त नेत्र और अनन्त पाद बतलाये गये हैं । अब काने लंगड़ आदि की आपत्ति नही दी जा सकती ।
ऐसा परमात्मा १० अंगुल में कैसे रहेगा -यह शड़्का व्याकरणसंस्कारशून्यतामूलक है; क्योंकि यहां दशाड़्गुल शब्द १० अंगुल के अर्थ में प्रयुक्त नही है । अपितु यहां दशाड़्ग शब्द से अनन्त योजन अर्थ में औणादिक उलच् प्रत्यय होकर दशाड़्गुल शब्द सिद्ध हुआ है ।

          अथवा पूर्वोक्त प्रमाण से दश शब्द अनन्त का वाचक मान लेने पर वह परमात्मा अनन्त अंगुल में रहता है –ऐसा अर्थ सुलभ हो जाने से उसकी अपरिच्छिन्नति में कोई अनुपपत्ति नही । अतः वह परमात्मा भूमि आदि समस्त लोकों में व्याप्त होकर अनन्त योजन अथवा अनन्त अंगुल पर्यन्त रहता है ;क्योंकि वह अपरिछिन्न है ।

यहां भूमि शब्द भूमि आदि समग्र लोकों का उपलक्षक है ।

जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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