बालकरूप राम कर ध्याना

बालकरूप भगवान् के स्वरूप का ध्यान अतिलाभप्रद है; क्योंकि ध्येय के गुण ध्याता में आते हैं । और शिशु स्वयं निर्मल होता है । भगवती श्रुति भी “बालवत् तिष्ठेत्” का आदेश ब्रह्मानुसन्धाता को देती हैं । बालसुलभ मानापमानराहित्य,और साधन के दुर्जय शत्रु काम तथा क्रोध का अभाव अत्यावश्यक होने से ये गुण बालस्वरूप प्रभु के चिन्तक को अनायास प्राप्त हो जाते हैं ।

 काम की उद्बोधिका युवावस्था का अभाव भी साधना में सहयोगी है । सनकादि ५ वर्ष की अवस्था में कामादि की परिधि में न आने की अभिलाषा से ही रहते हैं ।इसलिए बालस्वरूप का ध्यान साधक को स्वरूपानुसन्धान में परम सहयोगी होने से करना चाहिए ।

#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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