“ब्रह्मविद् और महावीरों की जन्मदात्री भगवती स्कन्दमाता”
देवर्षि नारद को आत्मतत्त्व का उपदेश करने वाले भगवान् सनत्कुमार को “स्कन्द” कहा गया है-
“भगवान् सनत्कुमारस्तं स्कन्द इत्याचक्षते तं स्कन्द इत्याचक्षते”-छान्दोग्योपनिषद्-७।२६।२,
अतः सनत्कुमार जैसे ब्रह्मवेत्ता और देवसेनापति कुमार स्कन्द (कार्तिकेय ) जैसे प्रचण्ड वीर जिनकी कृपा से
जन्म लेते हैं । उन पराम्बा भगवती को “स्कन्दमाता” कहते हैं ।
सप्तशती देवीकवच के प्रसिद्ध टीकाकार अपनी “प्रदीप” व्याख्या में लिखते हैं कि भगवती तेज से समुत्पन्न “सनत्कुमार” की “स्कन्द”-ऐसी संज्ञा है । अपने इस कथन में छान्दोग्यश्रुति को प्रमाण रूप से प्रस्तुत करके कहते
हैं कि सनत्कुमार जैसे ब्रह्मज्ञानी भी जिनके उदर से जन्म की उत्कट अभिलाषा रखते हैं । इससे सुनिश्चित है कि वे
भगवती “स्कन्दमाता” रजोगुण तमोगुण से रहित ज्ञान के मूल कारण सत्त्वगुण से युक्त होने से अति विशुद्ध हैं-
“सनत्कुमारस्य भगवतीवीर्यादुद्भूतस्य स्कन्द इति संज्ञा भगवान् सनत्कुमारस्तं स्कन्द इत्याचक्षते इति छान्दोग्यश्रुतेः । तथा च ज्ञानिभिरपि यदुदरे जन्माभिलषणीयमिति ‘अतिशुद्धा’ इत्यर्थः ।”
वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग ३६-३७ में वर्णित है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री भगवती पार्वती ही स्कन्दमाता
हैं । फिर भी न तो इन्होने स्कन्द को अपने गर्भ में धारण ही किया और न ही अपना पयःपान ही कराया । यही स्थिति
ब्रह्मा जी के मानसपुत्र भगवान् सनत्कुमार की भी है ।
इधर अनेक गर्भ में जाने के कारण ही कार्तिकेय का नाम स्कन्द पड़ा है-
“स्कन्द इत्यब्रुवन्देवाः स्कन्नं गर्भपरिस्रवे ।” -३७२/७,
पहले स्कन्द क्रमशः अग्नि और गङ्गा के उदर में जाकर अन्त में हिमालय के समीपवर्ती स्थान में उत्पन्न
हुए । देवों ने ६ कृत्तिकाओं को इन्हें दुग्धपान कराने के लिए प्रेरित किया । उस समय उन माताओं की इच्छा पूर्ण करने
के लिए इन्होने ६ मुख बना लिया और एक ही दिन में उन सबका दुग्धपान करके दैत्यों को युद्ध में जीत लिया-
“षण्णां षडाननो भूत्वा जग्राह स्तनजं पयः ।”-३७।२८-२९,
अतः भगवती पार्वती के गर्भ से उत्पन्न न होने एवं उनके द्वारा पालन न किये जाने से स्कन्द को उमासुत नहीं
कहना चाहिए-इस शंका का समाधान वहीं रामायण में दिया गया है कि जिस तेज से कुमार स्कन्द प्रकट हुए वह
भगवान् शिव और भगवती पार्वती के संयोग से ही प्रादुर्भूत हुआ था । अतः मूलतः ये उमासुत ही हैं । और भगवती पार्वती भी बड़े प्रेम से इन्हें अपना पुत्र मानती हैं-
“उमायास्तद्बहुमतं भविष्यति न संशयः”-३७।८,
अत एव भगवती पार्वती ही स्कन्दमाता हैं ।
दूसरी बात यह कि कृत्तिकाओं की गोद में जब भगवान् शिव, भगवती उमा आदि ने देखा तो वे षण्मुख स्कन्द दिव्य तेजःसम्पन्न रूप धारण करके भगवती पार्वती के समीप आये । उस समय प्रलयंकर भगवान् शंकर ने कहा कि यह
बालक गौरी का पुत्र है और स्कन्द नाम से विख्यात होगा-
स्कन्द इत्येवं विख्यातो गौरीपुत्रो भवत्वसौ ॥
-वामनपुराण-अध्याय-५४,
ब्रह्मा जी ने कुमार स्कन्द को चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को देवों के “सेनापति” पद पर अभिषिक्त किया-
“ततः षष्ठ्यान्तु शुक्लायां मासे तु चैत्रनामनि । सैनापत्येSभिषिक्तस्तु देवानां ब्रह्मणा स्वयम् ॥”
-संवत्सरकौमुदी में उद्धृत ब्रह्मपुराण का वचन
चार भुजाओं वाली सिंह पर विराजमान ये पराम्बा भगवती अपने दोनों हाथो में कमलपुष्प और एक में देवसेनापति
कुमार स्कन्द को ले रखी हैं । तथा एक हाथ उपासकों को सतत वर देने की मुद्रा में उत्थित है ।
सिंहासनसमारूढां गृहीतकमलद्वयाम् । स्कन्दस्य मातरं नौमि पराम्बां सकलेष्टदाम् ॥
अप्रमेयां दुराधर्षां भक्तचित्तविहारिणीम् । दारिणीं दुष्टदैत्यानां वरदां मातरं भजे ॥
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar