ब्राह्मण जङ्गम तीर्थ हैं
स्थावर और जङ्गम ये दो प्रकार के तीर्थ होते हैं । स्थावर तीर्थों में वे आते हैं जो एक स्थान पर स्थित रहते हैं ।
जैसे-पुष्कर आदि । जङ्गम तीर्थों में वे परिगणित हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थानों में पहुँचकर प्राणियों का कल्याण करते हैं । इनमें विशिष्ट महापुरुष आते हैं जो अपनी ज्ञानगङ्गा के विमल वारि में अवगाहन कराकर निखिल जीवों का उद्धार करते हैं ।
भागवत महापुराण में ऐसे ज्ञानी ब्रह्मवेत्ता को भगवान् श्रीहरि ने स्वयं अपने श्रीमुख से “ब्राह्मण”
कहा है–
जब सनकादिक के शाप से भीत जय, विजय नामक पार्षदों की परिस्थिति का ज्ञान प्रभु को हुआ तो वे स्वयं सनकादिक से बोले- आप लोग अपने मन में क्षोभ का अनुभव न करें कि मैंने शाप दे दिया; क्योंकि मेरे चरणों से निकली गङ्गा जी शिवसहित समस्त लोकों को पवित्र करने वाली हैं-ऐसा मैं स्वयं परम पवित्र और परमेश्वर होकर भी जिन ब्राह्मणों की चरणरज अपने मुकुट पर धारण करता हूँ । उन ब्राह्मणों को कौन नहीं सहन करेगा–
येषां बिभर्म्यहमखण्डविकुण्ठयोगमायाविभूतिरमलाङ्घ्रिरजः किरीटैः ।
विप्रांस्तु को न विसहेत यदर्हाणाम्भः सद्यः पुनाति सहचन्द्रललामलोकान् ।।–भा़़.पु.-३/१६/९,
भगवान् ने तो यहाँ तक कह दिया कि आप लोगों के विरुद्ध यदि मेरी भुजा भी हो जाय तो मैं उसे काट
डालूँगा-”छिन्द्यां स्वबाहुमपि वः प्रतिकूलवृत्तिम्।”-भा.पु.-३/१६/६, जो तिरस्कारपूर्वक कटु भाषण करने वाले ब्राह्मणों को भी मेरी भावना करके उन्हें मेरा स्वरूप समझकर पूजन करते हैं, उन्हें सन्तुष्ट कर लेते
हैं। वे मुझे अपने वंश में कर लेते हैं–”ये ब्राह्मणान् धिया क्षिपतोSर्चयन्तस्तुष्यद्धृदः–भा.पु.-३/१६/११,
वस्तुतः भगवान् ने स्वयं ब्राह्मणों की इतनी प्रशंसा क्यों की ? भगवान् क्यों ब्रह्मण्यदेव हैं ?
इसका कारण मात्र यही है कि “ब्राह्मण तीनों लोकों में विश्रुत जङ्गम तीर्थ हैं । उनके वचनरूपी विमलवारि से ही मलिन से मलिन प्राणी भी शुद्ध हो जाते हैं”–
ब्राह्मणाः जङ्गमं तीर्थं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम् ।
येषां वाक्योदकेनैव शुद्ध्यन्ति मलिना जनाः।।
ऐसे ब्राह्मणत्व की प्राप्ति हेतु आज के विप्रवर्ग को सचेष्ट होना चाहिए ।
समय पर अपने बच्चों का उपनयन कराकर उन्हें ब्रह्मगायत्री के जप और स्वाध्याय के लिए प्रेरित करना चाहिए । उनमें भक्ति कूट कूट कर भर देनी चाहिए ।
आज भक्ति का संस्कार न होने से ही देशभक्ति, मातृपितृभक्ति आदि का अभाव
होने से ही राष्ट्र के प्रति लोगों की सद्भावना का अभाव सा हो गया है ।
आज हमारे देश में केवल एक भक्ति ही शेष बची है और वह है वोटभक्ति
इसके लिए नेता नामधारी प्राणी धर्म क्या पूरे देश को बलात्कार,आतंकवाद और सम्प्रदायविशेष के तुष्टीकरण में निमग्न है ।अतः जो बचा है उसे अब नष्ट होने से बचाना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है ।
—जय श्रीराम—
—जयतु भारतम््,जयतु वैदिकी संस्कृतिः—
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar