भगवान् परशुराम क्षत्रिय जाति के विरोधी नहीं थे
“जहि दुष्टान् नृपोत्तमान्।”-इस आज्ञा के अनुसार जामदग्न्य ने दुष्ट राजाओं का वध किया , धार्मिक क्षत्रियों का नहीं । — आचार्य सियारामदास नैयायिक
“जहि दुष्टान् नृपोत्तमान्।”-इस आज्ञा के अनुसार जामदग्न्य ने दुष्ट राजाओं का वध किया , धार्मिक क्षत्रियों का नहीं । — आचार्य सियारामदास नैयायिक
श्रीपरशुरामजी के विषय में कालिका पुराण, भागवत, महाभारत तथा पद्मपुराण आदि मे बहुत प्रकाश डाला गया है । हम उनकी जयन्ती के उपलक्ष मे अपनी वाणी पवित्र करते हुए कुछ लिपिबद्ध कर रहे हैं ।
कालिका पुराण के अनुसार–
इक्ष्वाकुपुत्र विदर्भनरेश रेणु की पुत्री रेणुका से महर्षि जमदग्नि ने विवाह किया । जिससे इनके रुमण्वान् सुषेण आदि चार पुत्र हुए । तत्पश्चात् सहस्रबाहु के वध की इच्छा से इन्द्रादि देवताओ द्वारा प्रार्थना किये जाने पर स्वयँ भगवान् विष्णु ने इन जमदग्नि जी के यहाँ रेणुका के गर्भ से परशुराम जी के रूप मे जन्म लिया । इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह कि ये अपने फरसे (परशु) के साथ ही प्रकट हुए थे–
भारावतारणार्थाय जातः परशुना सह । सहजःपरशुस्तस्य तं जहाति कदा च न ।।
यह इनका प्रमुख आयुध है इसे कभी भी नही त्यागते । इसीलिए इहें “परशुराम” कहा जाता है ।
पद्मपुराण के अनुसार जमदग्नि जी ने स्वयं देवराज इन्द्र को यज्ञ से प्रसन्न करके महाबलशाली परमतेजस्वी और शत्रुसंहारक पुत्र प्राप्त किया जो सर्वलक्षणसम्पन्न एवं भगवान् विष्णु का अवतार था–
विष्णोरंशाँशभागेन सर्वलक्षणलक्षितम् । प.उ.ष.अ.२४१/१०,
कल्पान्तर के अनुसार परशु की प्राप्ति
पररशुरामजी गण्डकी नदी के तट पर महर्षि कश्यप से मन्त्रग्रहण करके अनेक वर्षो तक तप किये । विष्णु भगवान् ने प्रसन्न होकर उन्हें शत्रुसंहारक फरसा तथा दिव्य वैष्णव धनुष एवं अनेक अस्त्र शस्त्र देकर दुष्ट राजाओँ के विनाश का निर्देश दिया–
जहि दुष्टान् नृपोत्तमान् – पद्मपुराण उत्तरखण्ड-२४१वाँ अध्याय- श्लोक ४१,
जब ये बाहर गये हुए थे उसी समय सहस्रार्जुन आकर ध्यानस्थ जमदग्नि जी की गौ माँगा और न देने पर उनकी निर्मम हत्या कर डाली । माँ रेणुका छाती पीट पीट कर जोर जोर से रोने लगीं । रुदन सुनकर परशुरामजी शीघ्र दौड़ कर आये और प्रतिज्ञा करते हुए बोले – मातः ! आपने २१ बार छाती पीटा है । अतः मैँ २१ बार इन दुष्ट राजाओं का संहार करूँगा ।
ध्यान देने की बात यह है कि परशुरामजी के पिता का वध एक पापी राजा ने किया था और इधर भगवान् विष्णु ने भी उन्हे दुष्ट राजाओं के वध की ही आज्ञा दी थी–
“जहि दुष्टान् नृपोत्तमान् ।” – पद्मपुराण उत्तरखण्ड 241वाँ अध्याय श्लोक 41.
अतःउन्होने मात्र दुष्ट राजाओं का ही संहार किया सामान्य या धार्मिक क्षत्रियों का नही । निष्कर्ष यह कि उन्होने पापी राजवंश का नाश किया। सहस्रार्जुन जैसे हजारों राजा उनके हाथ से दण्ड पाकर पापमुक्त हुए।
तब “विश्वविदित क्षत्रिय कुल द्रोही।–” जैसे परशुराम जी के लिए प्रयुक्त पूज्यपाद गोस्वामी जी की चौपाई का क्या होगा–शंका नहीं करनी चाहिए ; क्योंकि उन्होंने मानस के आरम्भ में ही “नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्” से अनेक पुराणादि सम्मत तथ्य ही लिखने की प्रतिज्ञा की है । अतः चौपाई में “क्षत्रिय” शब्द से दुष्ट क्षत्रिय अर्थ लेना ही गोस्वामी जी को अभिमत है । दुष्ट क्षत्रिय कुल के द्रोही परशुराम जी विश्वविख्यात मानस में बतायें गये हैं । अब कोई विरोध नहीं ।
इसलिए ये धारणा मन से निकाल देनी चाहिए कि परशुरामजी किसी जातिविशेष के विरोधी थे ।
अत एव रावण का अत्याचार बढ़ने पर भी इन्होने उसे भी अनाचार न करने का सन्देश भेजा था। जिसे सुनाने के बाद सेनापति प्रहस्त ने लड़्केश से कहा – परशुरामजी को केवल ब्राह्मण समझकर उनकी आज्ञा का उल्लड़्घन नही करना चाहिए इसी में आपका कल्याण है अन्यथा आपके मित्र जमदग्निनन्दन का मन खिन्न हो जायेगा –
ब्राह्मणातिक्रमत्यागो भवतामेव भूतये । जामदग्न्यश्च वो मित्रमन्यथा दुर्मनायते । ।
वर्तमान काल मेँ जाति पाँति का भेदभाव न रखकर अत्याचारियों आतड़्कवादियों और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अस्त्र
उठाने की प्रेरणा देने वालो मे सर्वश्रेष्ठ मूलपुरुष श्रीपरशुराम जी की जयन्ती हम सभी को मनाते हुए एकजुट होकर अत्याचार, भ्रष्टाचार और आतड़्कवाद से लोहा लेने के लिए कृतसड़्कल्प होना है । हम इन्हे आदर्श मानकर इनका
स्मरण करते हुए रण का बिगुल बजा दें ।
जय श्रीराम जय जय महबली दुर्धर्ष भगवान् श्रीपरशुराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar