योग का प्रथम द्वार योगस्य प्रथमं द्वारं वाङ्निरोधोSपरिग्रह: । निराशा च निरीहा च नित्यमेकान्तशीलता ।। –विवेकचूडामणि-३६८ वाणी का निरोध,अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करना, किसी से आशा न रखना,विविध कामनाओं का त्याग और नित्य एकान्त में निवास –ये चार वस्तुयें आत्मचिन्तक के लिए सर्वप्रथम आवश्यक हैं ।–जय श्रीराम #आचार्य सियारामदास नैयायिकयोगस्य प्रथमं द्वारं वाङ्निरोधोSपरिग्रह: । निराशा च निरीहा च नित्यमेकान्तशीलता ।।
–विवेकचूडामणि-३६८
वाणी का निरोध,अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करना, किसी से आशा न रखना,
विविध कामनाओं का त्याग और नित्य एकान्त में निवास –ये चार वस्तुयें आत्मचिन्तक
के लिए सर्वप्रथम आवश्यक हैं ।
–जय श्रीराम
#आचार्य सियारामदास नैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar