राक्षसराज रावण और पक्षिराज जटायु का अद्भुत युद्ध
श्रीराम की पंचवटी में निर्मित कुटीर से कुछ ही दूरी पर स्थित होकर पक्षिराज जटायु जनकनन्दिनी की रक्षा में दत्तचित्त रहते थे । इधर शूर्पणखा की प्रेरणा से रावण मारीच की सहायता से जानकी जी का अपहरण करने का षड्यंत्र रचता है जिसके फलस्वरूप श्रीराम और लक्ष्मण सीता से सुदूर चले गये हैं । ऐसी स्थिति में दुरात्मा दशग्रीव त्रिदण्डी यति के वेश में जाकर छलपूर्वक जनकनन्दिनी का अपहरण करके आकाशमार्ग से चला ।
तब सोते हुए पक्षिराज जटायु से जानकी जी ने कहा -हे आर्य ! जटायो ! आप देखें, यह दुष्ट मुझे अपहरण करके ले जा रहा है । यह अस्त्र शस्त्र से युक्त और पराक्रमी है । इसलिए आप इसे नहीं रोक सकते । किन्तु
मेरे प्राणाराध्य श्रीराम और लक्ष्मण को यह बात अवश्य बतला देना कि रावण ने किस प्रकार मेरा अपहरण किया है ।
आवाज़ सुनते ही जटायु की आँखें खुलीं और उन्होंने रावण को समझाते हुए वहीं वृक्ष से सुन्दर वाणी में कहा –
आप राजा हैं, आप को अपनी पत्नी की भाँति दूसरों की स्त्रियों की भी रक्षा करनी चाहिए । मैं पक्षी होकर भी सनातन धर्म में स्थित हूँ । हे भाई! तुम्हें परदारापहरण जैसा निन्दनीय कार्य शोभा नहीं देता । मैं भी पक्षियों में सत्यप्रतिज्ञ महाबलशाली गृध्रराज जटायु हूँ । “प्राणी को उतना ही भार ढोना चाहिए जो उसे कष्टप्रद न हो और उतना ही अन्न खाना चाहिए जो पेट में जाकर पच जाय तथा रोग उत्पन्न न करे ।।”-वा.रा.अर.का.-१८,
जब रावण ने उनकी बात अनुसुनी कर दी । तब पक्षिराज ने कहा -रावण ! मैं ६०हजार वर्ष का हो गया हूँ और मैंने धर्मपूर्वक पिता पितामह से प्राप्त राज्य का पालन किया हैं । अब मैं वृद्ध हूँ और तुम अभी युवा हो, मैं युद्धोपयोगी साधनों से भी हीन हूँ पर तुम्हारे पास धनुष् बाण, कवच के साथ युद्ध योग्य रथ भी है फिर भी तुम मेरे सामने पुत्री सीता का हरण नहीं कर सकते । यदि वीर हो तो मुझसे युद्ध करो और मेरे द्वारा उसी प्रकार रणभूमि में सुला दिये जाओगे जैसे श्रीराम ने तेरे भाई खर को मारकर सदा के लिए सुला दिया था ।
अरे कायर! वे दोनों दशरथ के पुत्र इतनी दूर निकल गये हैं कि मैं उन्हें जब तक सूचित करूँगा तब तक तू भग जायेगा । किन्तु अब मैं ही तुझे युद्ध रूपी आतिथ्य दे रहा हूँ । ऐसा कहकर पक्षिराज उसकी ओर झपट पड़े । फिर क्या था कायर दशग्रीव ने उन पर बाणों की भीषण वर्षा आरम्भ कर दी । जटायु ने उसकी परवाह न करते हुए अपने पादप्रहार से उसके धनुष् और बाणों को तोड़ डाला ।
रावण ने दूसरा धनुष् लेकर हज़ारों बाणों की वर्षा करके उनके चारों ओर घोंसला सा बना दिया । पर
वीरवर जटायु ने अपने पंखों की भीषण मार से उस बाणवर्षा को धूल के समान उड़ाकर पुनः पादप्रहार से उसके धनुष् को खण्ड-खण्ड कर दिया और उसके कवच को तोड़ डाला । इतना ही नहीं उन्होंने रावण के
रथ में जुते हुए वेगशाली पिशाचमुख गधों को मारकर उसके विशाल रथ को भी विदीर्ण कर दिया । साथ ही रावण के छत्र चँवर को धारण करने वाले राक्षसों का वध करके उसके सारथी का मस्तक भी धड़ से
अलग कर दिया ।
रावण पक्षिराज जटायु के इस स्फूर्ति और वीरता को देखकर घबड़ा सा गया और जानकी जी को लिए ही पृथ्वी पर आ गिरा । गृध्रराज के इस वीरतापूर्ण कार्य को देखकर दृश्यादृश्य समस्त प्राणी उनकी प्रशंसा करने लगे और साधुवाद दिये ।-वा.रा.अर.का.-५१/२०,
रावण ने देखा कि पक्षिराज वृद्धावस्था के कारण परिश्रम से थक गये हैं ।अतः वह प्रसन्न हुआ और युद्ध न करके जानकी जी को लेकर फिर आकाशमार्ग से भगा । उसके पास अस्त्र शस्त्र के नाम पर केवल तलवार शेष बची थी । जटायु ने उसे पुनः ललकारा और बडे वेग से आक्रमण करते हुए अपने तीक्ष्ण नखों से उसकी पीठ पर बैठकर उसे चीरने लगे । जटायु का आयुध तो केवल उनके नख,चोंच और पंख ही थे । उन्होंने रावण के शिर के बालों को उखाड़ डाला । रावण ने उन पर अपने हाथ से चाटा मारा;क्योंकि जटायु की स्फूर्ति के सामने तलवार उठाने का अवसर कहाँ मिल रहा है ?
किन्तु जटायु की स्फूर्ति से वह असफल रहा । वे उसके प्रहार को बचा गये । और शीघ्रता से रावण की बायीं दशों भुजाओं को अपने चंचुप्रहार से उखाड़ डाले । किन्तु आश्चर्य !!! वे भुजायें पुनः निकल आयीं जैसे दीपकों की मिट्टी से सर्प । अब रावण अच्छी तरह समझ चुका है कि जटायु के जीते जी जनकनन्दिनी को ले जाना ही असम्भव नहीं अपितु अपने प्राणों की रक्षा भी असम्भव है । अतः जनकपुत्री को छोड़कर पक्षिराज से युद्ध करने लगा ।
वृद्धावस्था और युद्ध के परिश्रम से थके निहत्थे जटायु पर उसने खड्ग से प्रहार करके उनके पंख, पैर और पार्श्व भागों का काट डाला । वीरवर जटायु पृथ्वी पर गिर पड़े । जानकी जी उन्हें इस स्थिति में देखकर दौड़ पड़ीं । और उनसे लिपटकर रोने लगीं । रावण को अपनी ओर आते देख वे सुरक्षा के लिए भगीं किन्तु रावण ने उनके केश पकड़ लिया । इस अनाचार से जगत् में अन्धकार छा गया । वायु की गति मन्द पड़ गयी और सूर्य निष्प्रभ हो गये । जानकी जी के रावण द्वारा पकड़े गये केशों को अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ब्रह्मा जी बोल पड़े कि अब कार्य सम्पन्न हो गया अर्थात् रावण के इस जघन्य अपराध से उसे मृत्यु के मुख से अब कोई नहीं बचा सकता ।
अब पक्षिप्रवर मात्र श्रीराम को जानकी जी का सन्देश सुनाने के लिए अपने प्राणों को असह्य पीड़ा सहन करते हुए धारण कर रखे हैं । श्रीराम की प्रतीक्षा कर रहे हैं । जिसे परमात्मा का चिन्तन चल रहा हो उसे देहाध्यास न होने से देहव्यथा का भान कैसे होगा । ऐसे परमवीर भक्तप्रवर जटायु को शत शत नमन ।
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar