शत्रुबाधा नौकरी ग्रहदोष के लिए बजरंग बाण का अचूक प्रयोग

शत्रुबाधा नौकरी ग्रहदोष के लिए बजरंग बाण का अचूक प्रयोग

श्रीरामः शरणं मम

बजरंग बाण

बजरंग बाण का पाठ रात्रि ११ बजे से गूगल की धूप देते हुए करें | और ११ से २ के बीच जिस फल की इच्छा से पाठ किया जाय वह फल अवश्य प्राप्त होगा | किन्तु यदि किसी ब्राह्मण या साधु पर इसका प्रयोग किया गया | तो प्रयोक्ता या तो पागल हो जायेगा अथवा कोई महान अनिष्ट होकर रहेगा | निष्काम भाव के साधक इससे अभूतपूर्व लाभ उठा सकते हैं | ग्रहदोष या शत्रु-बाधा से मुक्ति के लिए ११ पाठ रात्रि को करें तो अभूतपूर्व लाभ होगा |

भोग में प्रतिमा या चित्र के समक्ष लड्डू या गुड चना रखें |

पाठ के अंत में वह प्रसाद किसी विप्र बालक को दें | अथवा किसी वृक्ष के नीचे रख दें | इससे छूटी हुई सर्विस और खोयी हुई प्रतिष्ठा अवश्य प्राप्त होगी | पाठकाल में ब्रह्मचर्य का पालन तथा लहसुन प्याज मांस मदिरा गांजा बीड़ी आदि से बचना अनिवार्य है | ताम्बूल का सेवन भी वर्जित है | शयन भूमि पर या काष्ठ की चौकी पर करना चाहिए | नियम के समय यदि स्त्री से संसर्ग हुआ तो कोई लाभ नही होगा | हानि अवश्य हो सकती है |

जो रात्रि में न कर सकें उन्हें प्रातः सूर्योदय के समय से पहले यह कार्य कर लेना चाहिए |

बजरंगबाण का यह पाठ प्रामाणिक और अनुभूत है । उपलब्ध पुस्तकों में लगभग २१ चौपाइयाँ छूटी हुई हैं ।

–#आचार्य सियारामदास नैयायिक

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।

जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।२।।

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।४।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ।।६।।

अक्षय कुमार को मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जै जै धुनि सुर पुर में भई ।।८।।

अब विलंब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होई दुख करहु निपाता ।।१०।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर । सुर समूह समरथ भट नागर ।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारू बज्र के कीलै ।।१२।।

गदा बज्र लै बैरिहि मारो । महाराज निज दास उबारो ।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।१४।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।।
सत्य होहु हरि शपथ पायके । राम दुत धरू मारू धायके ।।१६।।

जै जै जै हनुमन्त अनन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।१८।।

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं । अपने काज लागि गुण गावौं ।।२०।।

जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।२२।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बैताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की । राखु नाथ मर्जाद नाम की ।।२४।।

जनकसुतापति-दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावौ ।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसहु दुःख नाशा ।।२६।।

चरन पकरि कर जोरि मनावौं | एहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
उठु-उठु चलु तोहि राम दोहाई । पाँय परौं कर जोरि मनाई ।।२८।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता ।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।३०।।

अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होत अनन्द हमारो ।।
ताते विनती करौं पुकारी । हरहु सकल प्रभु विपति हमारी ।।३२।।

ऐसो बल प्रभाव प्रभु तोरा । कस न हरहु दुःख संकट मोरा ।।
हे बजरंग, बाण सम धावो । मेटि सकल दुःख दरस दिखावो ।।३४।।

हे कपिराज काज कब ऐहौ । अवसर चूकि अन्त पछितैहौ ।।
जन की लाज जात एहि बारा । धावहु हे कपि पवन कुमारा ।।३६।।

जयति जयति जय जय हनुमाना । जयति जयति गुणज्ञान निधाना ।।
जयति जयति जय जय कपिराई । जयति जयति जय जय सुखदाई ।।३८।।

जयति जयति जय राम पियारे । जयति जयति जय सिया दुलारे ।।
जयति जयति मुद मंगलदाता । जयति जयति त्रिभुवन विख्याता ।।४०।।

यहि प्रकार गावत गुण शेषा । पावत पार नहीं लवलेषा ।।
राम रूप सर्वत्र समाना । देखत रहत सदा हर्षाना ।।४२।।

विधि शारदा सहित दिनराती । गावत कपि के गुण गण पांती ।।
तुम सम नही जगत् बलवाना । करि विचार देखेउं विधि नाना ।।४४।।

यह जिय जानि शरण तव आई । ताते विनय करौं चित लाई ।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे । मेटहु सकल दुःख भ्रम सारे ।।४६।।

यहि प्रकार विनती कपि केरी । जो जन करै लहै सुख ढेरी ।।
याके पढ़त वीर हनुमाना । धावत बाण तुल्य बलवाना ।।४८।।

मेटत आय दुःख क्षण मांहीं । दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करै प्राण की ।।५०।।

डीठ, मूठ, टोनादिक नासै । परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासै ।।
भैरवादि सुर करैं मिताई । आयसु मानि करैं सेवकाई ।।५२।।

प्रण करि पाठ करै मन लाई । अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई ।।
आवृति ग्यारह प्रतिदिन जापै । ताकी छाँह काल नहिं चांपै ।।५४।।

दै गूगल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेशा ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिर कौन उबारै ।।५६।।

शत्रु समूह मिटै सब आपै । देखत ताहि सुरासुर काँपै ।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई । रहै सदा कपिराज सहाई ।।५८।।

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै सदा धरै उर ध्यान ।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान ।।

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासविरचितः बजरंगबाणः सम्पूर्णो जातः ।।

#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

6 Replies to “शत्रुबाधा नौकरी ग्रहदोष के लिए बजरंग बाण का अचूक प्रयोग

  1. महाराज जी सादर प्रणाम ???
    यदि श्री बजरंग बाण के इस विशुद्ध एवं प्रामाणिक पाठ की pdf. प्रति उपलब्ध करा सकें तो आपकी अत्यन्त कृपा होगी ।
    इसके ‘pdf की print निकलवाकर दैनिक पाठ करने में बहुत सुविधा होगी ।
    अवश्य कृपा कीजियेगा ।
    भवदीय
    पाण्डेयोपाह्व राकेश शर्मा
    रायपुर छग.

  2. Kya Bina अनुष्ठान के भी नित्य पाठ किया जा सकता है ?

  3. कितने दिनों तक यह पाठ करना है कृपा कर के इस पर प्रकाश डाले ??

    1. भगवन् प्रथम अनुष्ठान ११ पाठ प्रतिदिन करते हुए ११ दिन पूर्ण करें। जय श्रीराम

    2. Guruji mere pure family pe lagatar 10 se 12 salo se black magic ho raha hai

      bajrangban ka path krne ke bad 4-5 din thik se jate hai
      Lekin dubara hamare upar black magic kiya jata hai
      krupa kar ke margdarshan kare?
      Jai shree Ram!?

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