श्रीसूक्त: मन्त्र-3 की व्याख्या

श्रीसूक्त: मन्त्र-3 की व्याख्या

 

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् |
श्रियं देवीमुह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ||३||

अन्वय–अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् श्रियं देवीम् उपह्वये ,श्रीः देवी मा जुषताम् ||

अनुवाद –

जिनके आगे घोड़े तथा मध्य में रथ हैं , जो हाथियों के विलक्षण घोष से जागने वाली हैं |-ऐसी श्रीदेवी अर्थात् भगवान् की द्वितीय पत्नी ( ” श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च ते पत्न्यौ ” श्री और लक्ष्मी आपकी २ पत्नियां हैं ) श्री देवी को मैं अपने समीप बुलाता हूँ | वे श्री देवी मुझ पर प्रसन्न हों अर्थात जैसे एक राजा को ये तीनों वस्तुएं होती हैं | वैसे ही मुझे भी भगवती श्री जी की कृपा से ये सब प्राप्त हो जांय |

व्याख्या–

भगवती श्री का विशेष रूप बतलाते हुए कहते हैं-अश्वपूर्वां–जिनके प्रस्थान करने पर उनकी सेना के अग्र भाग में असंख्य अश्व चलते हैं ऐसी भगवती श्री को अश्वपूर्वा कहा गया है |-तां-अश्वपूर्वां | रथमध्यां–पूर्वोक्त रीति से जिनकी सेना के मध्य भाग में दिव्य रथ होते हैं उन श्रीदेवी को रथमध्या कहा गया है | तां-रथमध्यां |

हस्तिनादप्रबोधिनीं–

ग्राह से ग्रस्त गजेन्द्र के आर्तनाद से प्रबुद्ध कृपासागर भगवान् से भी पूर्व जागने वाली अथवा आश्रितों के यहाँ आगमन काल में गजों की ध्वनि को ज्ञापित करने वाली भगवती श्री देवी को मैं, उप–समीप में ,ह्वये –बुलाता हूँ | ऐसी भगवती श्री, मा –मां–मुझे , जुषताम–सेवन करें अर्थात् अपनी कृपा दृष्टि से मुझे अश्व , रथ और गजरूप ऐश्वर्य प्रदान करें |

पुरश्चरण–

इस ऋचा का संध्या वंदन ,गायत्री जप के पश्चात् प्रातः काल माया बीज (ह्रीं ) सहित श्रीं बीज से ( अर्थात् ह्रीं श्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः –इस प्रकार करन्यास आदि ) न्यास करके १ हजार जप प्रतिदिन करे तो १२ वर्ष के जप के प्रभाव से व्यक्ति राजा हो जाता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके अतुल वैभव प्राप्त करता है –ऐसा मन्त्रकल्पार्णव में कहा गया है |

जय श्रीराम

आचार्य सियारामदास नैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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