संध्या और ब्रह्मगायत्री जप की संख्या का सप्रमाणविवेचन

स्नान करने के पश्चात् द्विज को समयानुसार संध्या में प्रवृत्त होना चाहिए । सन्ध्या नित्य कर्म है । यदि समय स्वल्प हो तो संक्षेप में भी सन्ध्या कर लेनी चाहिए । सन्ध्या के मन्त्रों में प्राणायाम से नाड़ीशोधन होता है । मार्जन से शरीरशुद्धि और  -सूर्यश्च इत्यादि मन्त्रों से आचमन करने पर रात्रिकृत पापों का नाश होता है । द्रुपदादिव-मन्त्र  एवं अघमर्षण मन्त्र से पापों का विध्वंस होता है ।
इसीलिए मनीषीजन कहते हैं कि सन्ध्या न करने पर पाप लगता है; क्योंकि रात्रिकृत दुष्कृत नष्ट नहीं हुआ । और करने पर पुण्य नहीं होता है ; क्योंकि स्वर्गादि की भांति किसी फलविशेष के लिए सन्ध्या कर्म का विधान नहीं है ।
नित्य कर्म में कुछ अंग यदि समय न होने से छूट भी  जांय तो कोई हानि नहीं है; क्योंकि सूर्यशच् इत्यादि मन्त्र से किया जाने वाला पापप्रणाश द्रुपदादिव मन्त्र से हो जाता है । सूर्यश्च–, तथा द्रुपदादिव ये दोनों मन्त्र पापक्षालक हैं । किन्तु यही कार्य अघमर्षण मन्त्र से भी होता है । अघमर्षण तान्त्रिक सन्ध्या में विशेष बतलाया गया है ।
सन्ध्या अनिवार्य है । द्विज मात्र को प्राणायाम अघमर्षण सूर्यार्घ्य तथा गायत्री जप ये सब प्रतिदिन करना चाहिए ।
गायत्री जप की संख्या 
साधक को प्रतिदिन समय को देखकर जपसंख्या निर्धारित करनी चाहिए ।  जो वैष्णवादि मन्त्रों से दीक्षित नहीं हैं । वे नित्य १००० संख्या में गायत्री जप करें । कम समय हो तो १००  जप और अतिस्वल्प समय वालों को १० की संख्या  में गायत्री जप अनिवार्य है ।–
सहस्रपरमां देवीं शतमध्यां शतावराम् । गायत्रीं यो जपेन्नित्यं न स पापैर्हि लिप्यते ।।
– नरसिहंपुराण, अध्याय ५८/८६
इस प्रकार जापक पापों से लिप्त नहीं होता है ।
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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