होलिकारमणी दिव्या अर्बुदे वीक्ष्य राघवम् ।
चुम्बति चाथ मा मैवं भाषते चारुहासिनी ।।
होलिकारूपिणी दिव्य रमणी अर्बुदाचल( माउंट आबू ) में षोडश वर्षीय सर्वेश्वर श्रीरघुनाथ जी को देखकर अपने आप को रोक न सकी और चुम्बन करने लगी । जब मन्दस्मित रघुनाथ जी कुछ सचेष्ट हुए तब वह चारुहासिनी “नहीं नहीं”– ऐसा कहने लगी ।
—#आचार्यसियारामदासनैयायिक
