पुरुषसूक्त मन्त्र-२ की व्याख्या

पुरुषसूक्त मन्त्र-२ की व्याख्या

पुरुषसूक्त मन्त्र-२ की विशद हिन्दी व्याख्या –आचार्य सियारामदास नैयायिक

पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ।। 2 ..

प्रथम मन्त्र में भगवान् सर्वत्र व्याप्त है -यह बात उनके स्वरूप का निरूपण करते हुए बतायी गयी । इस मन्त्र में प्रभु ही नाना रूपों में हैं और वही जीवों के लिए मोक्षप्रद हैं—इस तथ्य का उद्घाटन किया जा रहा है –
इदं= यह, यत् = जो कुछ दृश्यादृश्य जगत् है, सर्वं =यह सब, पुरुषः =भगवान् , एव =ही,हैं । जैसे मिट्टी से घट बनता है अतः वह उस घट की उपादान कारण है । ठीक इसी प्रकार प्रकृति भी भगवान् का शरीर है– यस्य प्रकृतिः शरीरं , जगत् सर्वं शरीरं ते –वा0रा0यु0का0-117/­25.

समस्त जगत् भगवान् का शरीर है । इसलिए शरीरशरीरीभाव सम्बन्ध को लेकर सम्पूर्ण जगत् को हरि ही कहा गया । प्रकृतिरूप शरीर मे विकार होने पर भी परमात्मा का अविकारित्व शास्त्रसिद्ध है । जीव भी भगवान् का शरीर है –यस्य आत्मा शरीरम्—-.

अतः सब कुछ भगवान् ही हैं । इसी को श्रुति ने “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” जैसे वाक्यों से कहा है ।
यद्भूतं = जो अतीत वस्तु थी और यच्च भाव्यम् =जो भविष्य में होने वाली है । वह सब भगवान् ही हैं । यहाँ जो प्रथमान्तविभक्ति वाले पदो में समानविभक्तिरूप सामानाधिकरण्य है । वह देहदेहिभाव को लेकर है ।
अब भगवान् ही मोक्षप्रद हैं —इसे उतामृत —इत्यादि से बतला रहे हैं —-

उत = किञ्च ये भगवान् ही, अमृतत्वस्य = मोक्ष = सार्ष्टि, सालोक्य, सामीप्य और सायुज्य इन चार प्रकार की मुक्तियों के (निघण्टु में अमृतशब्द मोक्षवाचक कहा गया है— मोक्षे नित्येऽमृते देवे कीर्तितं त्वमृतं बुधैः ) ईशानः = स्वामी भी हैं ।

यद् अन्नेन अति रोहति =प्रतिदिन खाये जाने वाले अन्न से बाल्य कौमारादि अवस्थाओं को, अति =क्रमशः अतिक्रमण करते हुए, यत् = जो जीवों का समूह, रोहति = बढ़ता अर्थात् नूतन अवस्था को प्राप्त होता है। उसे मोक्षदेने वाले भगवान् ही हैं । अतः हमे प्रतिदिन उनकी उपासना अवश्य करनी चाहिए ।

जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *