दयानन्दीय भ्रान्तिगिरि-भङ्ग, पृष्ठ-८
स्वामी दयानन्द—ब्राह्मणग्रन्थ वेद के व्याख्यान हैं पर वेद नही—“ ब्राह्मणानि तु वेदाख्यानान्येव सन्ति, नैव वेदाख्यानानि “-ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पृष्ठ-८६,
समाधान—आचार्य सियारामदास नैयायिक—वाह स्वामी जी ! वेद के व्याख्यान है ब्राह्मणग्रन्थ, पर वेद नहीं | क्या तर्क है ? महर्षि पाणिनि के सूत्रों पर व्याख्यानात्मक विपुलकाय महाभाष्य जैसा ग्रन्थ है ,क्या वह व्याख्यान होने के कारण व्याकरण नही माना जायेगा ? आप भी तो उस व्याख्यान रुपी महाभाष्य को व्याकरण मानते हैं , और न मानने वालों पर आप आश्चर्य भी व्यक्त करते हैं | देखें स्वामी जी का साक्ष्य—“ मैथिल पंडित ने कहा—महाभाष्य तो व्याकरण ही नही ”|स्वामी जी ने उठते हुए कहा कि—“ यह एक विलक्षण सभा है | जिसमें महाभाष्य व्याकरण नही माना जाता | और यह पंडित जी भी एक विचित्र बुद्धि के धनी हैं, जो व्याकरण की गणना महाभाष्य में नही करते “ |–श्रीमद्दयानंद प्रकाश, गंगाकाण्ड-सरह २ /पृष्ठ—७१,
आप सूत्रों के व्याख्यान महाभाष्य को व्याकरण मान लिए फिर यहाँ मन्त्रों के व्याख्यान ब्राह्मणभाग को उसी आधार से वेद क्यों नही मान लेते ? जबकि प्रमाण और साक्ष्यों के आधार पर हम उसे वेद सिद्ध कर चुके हैं |मन्त्र भाग और ब्राह्मण भाग का उपदेष्टा परमात्मा हम दोनों को मान्य है सर्वज्ञ इश्वर से प्रोक्त होने के कारण समप्रामान्य भी दोनों में है | तथा उनके प्रयोगों की सिद्धि के लिए व्याकरण के सूत्र भी सामान हैं , भेद मानने पर ब्राह्मण भाग के प्रयोग भी सिद्ध नही हो सकते |
इसीलिये हमारे सभी ऋषियों ने चाहे वे व्यास जी हों या महर्षि जैमिनि, चाहे महर्षि पाणिनि हों या भगवान् पतंजलि , चाहे वे महर्षि आपस्तम्ब हों या ऋषिवर कात्यायन–ये सब ब्राह्मणभाग तथा मन्त्रभाग दोनों को अनादिकाल से वेद मानते चले आ रहे हैं |समग्र अनुष्ठान ब्राह्मण भाग पर आश्रित है | उसके विना किसी कर्म का अनुष्ठान ही नही हो सकता , केवल मन्त्र लेकर चाटेंगे क्या ?
वेदविभाजक द्वैपायन व्यास जी के साक्षात शिष्य, १२ अध्यायों की पूर्व मीमांसा के प्रणेता महर्षि जैमिनि ने भी समान रीति से मन्त्र और ब्राह्मणभाग को वेद माना है |और आपके सभी तर्कों पर ताला जड़ दिया गया है |अतः कोई आधार नही कि हम आपका मिथ्या कथन स्वीकार करें |
मन्यते मन्त्रभागे हि वेदत्वं श्रीमता यथा | व्याख्यानब्राह्मणग्रन्थे न महाभाष्यवत् कथम् ? ||
>>>>>जय वैदिक सनातन धर्म,जय श्रीराम<<<<< ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का खण्डन—आचार्य सियारामदास नैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar