तारा द्वारा बालि के समक्ष श्रीराम के तेज और बल का वर्णन

जब सुग्रीव दूसरी बार बालि से युद्ध करने गए तो उनकी भीषण गर्जना से क्रुद्ध शक्रसुत युद्ध हेतु निकला | उस समय उसकी प्रियतमा तारा उसे मना करती हुई कहती है कि मैंने कुमार अंगद से सुना है कि सुग्रीव को अयोध्याधिपति महाराज दशरथ के दो पुत्र सहायक रूप में प्राप्त हुए हैं | जो वीर और रणभूमि में दुर्जय ( अजेय ) हैं—

“अयोध्याधिपतेः पुत्रौ शूरौ समरदुर्जयौ |–«वाल्मीकिरामायण,अरण्यकाण्ड-१५/१७»

यदि आप सेना लेकर जायेंगे तो भी उनसे पार नही पा सकते क्योंकि राम प्रलयकाल के अग्नि की भांति शत्रुसैन्य का विध्वंस करने वाले हैं—

“रामः परबलामर्दी युगान्ताग्निरिवोत्थितः” |–«वाल्मीकिरामायण,अरण्यकाण्ड- 15/19»

यदि कहो कि मेरे सामने लड़ने के लिए आने वाले शत्रु का आधा बल मुझमे आ जाता है | अतः दशरथनन्दन राम से मुझे रणभूमि में कोई भय नहीं | तो आपका यह कथन भी मिथ्या है क्योंकि श्रीराम रणक्रीडा में अजेय और अप्रमेय हैं—

“दुर्जयेनाप्रमेयेण रामेण रणकर्मसु |”–«वा.रा.अर. का.—१५/२२»

अर्थात् उनके बल की कोई सीमा = मापतौल नहीं है  कि आप उनका आधा बल ले लें | आधा तो उसका होता जिसकी सीमा निर्धारित होती है | जिसका बल अप्रमेय = असीम है उसका आधा कौन और कैसे कर सकता है ?

आप इन्द्र के अंश से उत्पन्न होने से इतने बलशाली हैं पर श्रीराम आपके मूल अंशी देवराज इन्द्र के समान तेजस्वी हैं | ( यद्यपि इन्द्र का बल और तेज भी परिमित अर्थात् सीमित है और श्रीराम का असीम—

“अप्रमेयं हि तत्तेजो यस्य सा जनकात्मजा”|–«वाल्मीकिरामायण,अरण्यकाण्ड–३७/१८»

‘मारीच कहता है–रावण ! सीता जी जिनकी पत्नी हैं उन श्रीराम का तेज अप्रमेय है’ | अतः इन्द्र से श्रीराम की उपमा नहीं देनी चाहिए | तथापि कभी कभी अल्प से भी उत्तम वस्तु की उपमा दी जाती है | जैसे किसी ने सूर्य के गति की तीव्रता बतलाने के लिए कहा कि सूर्य बाण के वेग से चलते हैं—“इषुवत् सविता गच्छति” | जबकि सूर्य की गति बाण से बहुत तीव्र कही गयी है | इसी प्रकार परिमित बलशाली इन्द्र से अपरिमित  बलशाली श्रीराम की उपमा दी गयी | )

 अतः आपको उनसे लड़ाई नहीं करनी चाहिए—

“क्षमो हि ते कोशलराजसूनुना न विग्रहः शक्रसमानतेजसा” ||–«वाल्मीकिरामायण,अरण्यकाण्ड—१५/३०»

तारा अपने इन वचनों से स्पष्ट कह रही है कि स्वामिन् ! आप इन्द्र के तेज से उत्पन्न होने के कारण इतने बलवान हैं पर राघवेन्द्र श्रीराम तो आपके पिता तुल्य तेजस्वी हैं | अतः यह सुनिश्चित है कि आप उनसे कम ही हैं | इसलिए उनसे आपको विरोध करना ठीक नहीं | किन्तु वह तारा की बात न माना और मृत्यु के मुख में चला गया | रावण भी इसी तरह पत्नी की बात न मानकर  काल के गाल में चला गया | इसलिए पति को बुद्धिमती पत्नी की बात अवश्य माननी चाहिए | अस्तु |

अतः श्रीराम बालि के समक्ष लड़ने के लिए जाते तो वह उनका आधा बल ले लेता  जिससे वे उसे मार नहीं पाते—–इत्यादि कुशंकाओं का समूलोच्छेद हो गया |

जय श्रीराम 

#आचार्यसियारामदासनैयायिक

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