द्वितीयस्वरूप वन्दनीया भगवती माँ ब्रह्मचारिणी

द्वितीयस्वरूप वन्दनीया भगवती माँ ब्रह्मचारिणी

भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या–”वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म”-वेद, तत्व और तप तथा ब्रह्म । तप का आचरण करने वाली भगवती । इसी लिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है । भगवती ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है । इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है-

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

अपने पूर्व जन्म में ये राजा हिमालय के घर पुत्री रुप में उत्पन्न हुई थी। भगवान शंकर को पति रुप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने घोर तपस्या की थी । माँ दुर्गा का यह द्वितीय स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला कहा गया है । माँ ब्रह्मचारिणी भगवती की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

ध्यान

वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । जपमालाकमण्डलुधरां ब्रह्मचारिणीं शुभाम् ।।
गौरवर्णां स्वाधिष्ठानास्थितां द्वितीय दुर्गां त्रिनेत्राम् । धवलपरिधानां ब्रह्मरूपां पुष्पालंकारभूषिताम् ।।
पद्मवदनां पल्लवाराधरां कातंकपोलां पीनपयोधराम् । कमनीयां लावण्यां स्मेरमुखीं निम्ननाभिं नितम्बिनीम् ।।

स्तोत्र

तपश्चारिणीं त्वां हि तापत्रयनिवारिणीम् । ब्रह्मरूपधरां ब्रह्मचारिणीं प्रणमाम्यहम ।।
नवचक्रभेदिनीं त्वां नवैश्वर्यप्रदायनीम् । धनदां सुखदां ब्रह्मचारिणीं प्रणमाम्यहम् ।।
शंकरस्य प्रिया त्वं हि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी । शान्तिदामानन्दां ब्रह्मचारिणीं प्रणमाम्यहम् ।।

कवच

त्रिपुरा हृदये पातु ललाटे शिवभामिनी । अपर्णा मे सदा पातु नेत्रेSधरे कपोलके ॥
पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे महेश्वरी । षोडशी मे सदा पातु नाभौ गुदं च पादयोः ।
अंगं च सततं पातु प्रत्यंगं ब्रह्मचारिणी ।।

वस्तुतः माँ के इस ब्रह्मचारिणी रूप को समस्त विद्याओं की जननी माना गया है । इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है । यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडलु़ लिए हुए सुशोभित हैं ।

देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए १०००वर्ष तक मात्र फल खाकर रहीं और ३०००वर्ष तक शिव की तपस्या केवल वृक्षों से गिरी पत्तियां खाकर कीं । इसी कठोर तप के कारण उन्हें ” ब्रह्मचारिणी” कहा जाता है ।

जय जगदम्बे ब्रह्मचारिणि

#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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