स्कन्दमाता –भगवती दुर्गा का पांचवां स्वरूप

स्कन्दमाता –भगवती दुर्गा का पांचवां स्वरूप

 देवर्षि नारद को आत्मतत्त्व का उपदेश करने वाले भगवान् सनत्कुमार को ” स्कन्द ” कहा गया है–” भगवान् सनत्कुमारस्तं स्कन्द इत्याचक्षते तं स्कन्द इत्याचक्षते “-छान्दोग्योपनिषद्-७/२६/२, अतः सनत्कुमार जैसे ब्रह्मवेत्ता और देवसेनापति कुमार स्कन्द (कार्तिकेय ) जैसे प्रचण्ड वीर जिनकी कृपा से जन्म लेते हैं ,उन पराम्बा को “स्कन्दमाता” कहते है|
सप्तशती के प्रसिद्ध टीकाकार अपनी गुप्तवती व्याख्या में लिखते हैं कि भगवती
के तेज से उत्पन्न “ सनत्कुमार ” की “ स्कन्द “—ऐसी संज्ञा है –अपने इस कथन में छान्दोग्यश्रुति को प्रमाण रूपेण प्रस्तुत करके कहते हैं कि सनत्कुमार जैसे ब्रह्मज्ञानी भी जिनके उदर से जन्म की उत्कट अभिलाषा रखते हैं |
इससे निश्चित है कि वे भगवती “ स्कन्दमाता ” रजोगुण तमोगुण से रहित ज्ञान के
कारण सत्त्वगुण से युक्त होने से अति विशुद्ध हैं –
“ सनत्कुमारस्य भगवतीवीर्यादुद्भूतस्य “ स्कन्द ” इति संज्ञा ” भगवान् सनत्कुमारस्तं स्कन्द इत्याचक्षते ‘ इति छान्दोग्यश्रुतेः | तथा च ज्ञानिभिरपि यदुदरे जन्माभिलषणीयमिति “ अतिशुद्धा ” इत्यर्थः”|
वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग ३६-३७ में वर्णित है कि पर्वतराज हिमालय की पुत्री भगवती पार्वती ही स्कन्दमाता हैं | फिर भी न तो इन्होने स्कन्द को अपने गर्भ में धारण ही किया और न ही अपना पयःपान ही कराया |
            इधर अनेक गर्भ में जाने के कारण ही कार्तिकेय का नाम स्कन्द पड़ा है-

स्कन्द इत्यब्रुवन्देवाः स्कन्नं गर्भपरिस्रवे |-३७/२७,
 पहले स्कन्द क्रमशः अग्नि और गङ्गा के उदर में जाकर अन्त में हिमालय के समीपवर्ती
स्थान में उत्पन्न हुए | देवों ने ६ कृत्तिकाओं को इन्हें दुग्धपान कराने के लिए प्रेरित किया |उस समय उन माताओं की इच्छा पूर्ण करने के लिए इन्होने ६ मुख बना लिया और एक ही दिन में उन सबका दुग्धपान करके दैत्यों को युद्ध में जीत लिया –
षण्णां षडाननो भूत्वा जग्राह स्तनजं पयः |–३७/२८-२९,
            अतः भगवती पार्वती के गर्भ से उत्पन्न न होने एवं उनके द्वारा पालन न किये जाने से स्कन्द को उमासुत नही कहना चाहिए–-

 इस  शंका का समाधान वहीं रामायण में दिया गया है कि जिस तेज से कुमार स्कन्द प्रकट हुए वह भगवान् शिव और भगवती पार्वती के संयोग से ही प्रादुर्भूत हुआ था | अतः मूलतः ये उमासुत ही हैं |
और भगवती पार्वती भी बड़े प्रेम से इन्हें अपना पुत्र मानती हैं –
“ उमायास्तद्बहुमतं भविष्यति न संशयः ”—३७/८, अतः भगवती पार्वती ही स्कन्दमाता हैं |
   ये चार भुजाओं वाली और सिंह पर विराजमान हैं और अपने दोनों हाथो में कमलपुष्प
एक में कुमार स्कन्द को ले रखी हैं | तथा एक हाथ उपासकों को वर देने की मुद्रा में है |
सिंहासनसमारूढां गृहीतकमलद्वयाम् | स्कन्द मातरं नौमि पराम्बां सकलेष्टदाम् ||
अप्रमेयां दुराधर्षां भक्तचित्तविहारिणीम् |दारिणीं दुष्टदैत्यानां वरदां मातरं भजे ||

>>>>>आचार्य सियारामदास नैयायिक<<<<<

Gaurav Sharma, Haridwar

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