लक्ष्मी और सरस्वती की परमाश्रया पराम्बा भगवती कात्यायनी
“षष्ठं कात्यायनीति च”
प्राकट्य –
नवरात्र के छठे दिन सद्यः फलदायिनी मां ‘कात्यायनी’ की पूजा-अर्चना की जाती है। महर्षि कात्यायन के
आश्रम में देवताओं के कार्य को सिद्ध करने के इए इन भगवती का प्राकट्य हुआ और महर्षि कात्यायन ने इन्हें पुत्री
रूप में स्वीकार कर लिया । इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा-
“कात्यायनीति-देवकार्यार्थे कात्यायनाश्रमे आविर्भूता तेन कन्यात्वेन स्वीकृतेति “कात्यायनी” इति नाम
भगवत्याः”-गुप्तवती टीका ।
कात्यायनी शब्द का गूढार्थ
कात्यायनी शब्द की एक विलक्षण व्युत्पत्ति “शान्तनवी” टीका में इस प्रकार की गयी है-“कश्च-ब्रह्मा, अश्च-विष्णुः तौ अततः-सततं यथाक्रमं गच्छतः-प्राप्नुतः इति कात्यौ-सरस्वती च रमा च । कर्मण्यण् ।वाणीरमयोः आसमन्तात् अयनी-परमा गतिः-परमाधिष्ठानशक्तिरधिदेवता कात्यायनी” .
अर्थ-एकाक्षर कोष के अनुसार “क”शब्द ब्रह्मा जी का तथा “अ” शब्द भगवान् विष्णु का वाचक है । भागवत पुराण-१२/१३.१९, में ब्रह्मा जी के लिए क शब्द प्रयुक्त हुआ है और “अक्षराणामकारोsस्मि” तो प्रसिद्ध ही है । इस
प्रकार द्वन्द्व समास होकर “का” शब्द बना । पुनः कापूर्वक अत् धातु से कर्म में अण् प्रत्यय होकर णित्वात् स्त्रीत्व
विवक्षा में ई होकर काती शब्द बना ।
जिसका अर्थ हुआ सरस्वती और लक्ष्मी । पुनः “कात्योः वाणीलक्ष्म्योः आसमन्तादयनी”-ऐसा षष्ठी तत्पुरुष समास
करके आङ् उपसर्ग के आ ओर अयनी के अ इन दोनों के स्थान में दीर्घ संधि होकर “आयनी” तत्पश्चात् “कात्यायनी” शब्द सिद्ध हुआ । जिसका अर्थ है -सरस्वती और लक्ष्मी-इन दोनों प्रमुख देवियों की अधिष्ठानशक्ति अधिदेवता ।
अर्थात इन दोनों की परमाश्रया-भगवती “कात्यायनी” । एवञ्च सरस्वती और भगवती लक्ष्मी इन दोनों की आश्रयस्वरूपा होने से इनकी उपासना द्वारा धन तथा ज्ञान इन दोनों की प्राप्ति स्वतः सिद्ध है । इनको प्रसन्न करने का मन्त्र है-
“एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् । पातु नः सर्वभूतेभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते।।”
-सप्तशती-११/२४,
माँ कात्यायनी सद्यः फलदायिनी हैं। दुर्गापूजा के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। ये सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली तथा सुसज्जित आभामण्डल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार एवं दाएं हाथ में स्वस्तिक और
एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उत्थित है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों फलों की प्राप्ति सद्यः हो जाती है । वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।
ये छठे “आज्ञाचक्र” की अधिष्ठात्री देवी हैं । अतः इनके ध्यान से उस चक्र के खुल जाने से प्राणी ब्रह्माण्ड की किसी भी वस्तु को देखने में सक्षम हो जाता है । विशेषकर साधक योगियों को इनका आश्रय अवश्य लेना चाहिए ।
जय माता कात्यायनी
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar