दशहरे का आध्यात्मिक रहस्य
दशहरा विजयदशमी को मनाया जाता है । सम्पूर्ण विश्व में इस पर्व की बड़ी महिमा है । आश्विन मास शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को इसे मनाने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है । इस दिन आराधक विशेषरूप से भगवती “अपराजिता” की उपासना करके अदम्य ऊर्जा को प्राप्त करके अजेय बन जाता है ।
इसी दिन नृपगण भगवती अपराजिता की अर्चना करके अरिदल पर विजय हेतु प्रस्थान करते थे. “विजयदशमी” भी कहा जाता है । इसका इतना महत्त्व है कि यदि किसी प्रकार इस दिन संग्राम के लिए राजा प्रस्थान न कर सका तो वर्ष भर उसे पराजय का मुख देखना पड़ता था —-
दशमीं यः समुल्लंघ्य प्रस्थानं कुरुते नृपः ।
तस्य संवत्सरं राज्ये न क्वापि विजयो भवेत् ।।
यदि युद्ध के लिए किसी कारण से वीर पुरुष न निकल सके तो उसे अपने तलवार आदि अस्त्र शस्त्रों की यात्रा निकालनी चाहिए–
“छत्रायुधाद्यमिष्टं वैजयिकं निर्गमे कुर्यात्” .
इतना भी न कर सके तो घर में ही अस्त्र शस्त्र का पूजन कर ले । जैसा कि आज भी धार्मिक जन करते हैं ।
भगवती दुर्गा की अर्चना नवरात्र पर्यन्त सम्पन्न करके अर्चक दशमी तिथि को ही देवी की यात्रा निकाल करके उस प्रतिमा को प्रार्थनापूर्वक जल में विसर्जित करता हैं–
निमज्जाम्भसि देवि !त्वं चण्डिकाप्रतिमा शुभा ।
पुत्रायुर्धनवृद्ध्यर्थं स्थापितासि जले मया ।।
————–बृहन्नन्दिकेश्वर पुराण पद्धति
इससे पुत्र,आयु धन आदि की वृद्धि होती है ।
रावणवध
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से युद्ध करने के लिए लंकापति रावण आश्विन मास की अमावस्या को रणभूमि में आया । –वाल्मीकिरामायण–युद्धकाण्ड,92/66,
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को देवराज इन्द्र ने अपने सारथि मातलि को रथ लेकर श्रीराम की सहायता हेतु भेजा । इधर अमावस्या की रात्रि को ही राघव पर अनुग्रह करने के लिए ब्रह्मा जी द्वारा प्रेषित रणचण्डी भगवती महाकाली दशरथनन्दन के समीप लंका में पहुंच गयीं । रामरावणयुद्ध प्रतिपदा से अष्टमी की रात तक निरन्तर चला । नवमी को मध्याह्न के आस पास रावण का वध हुआ –
“नवम्यां रावणं ततः । रामेण घातयामास महामाया जगन्मयी”.. — कालिकापुराण ;
क्योंकि उसके वध के समय सूर्य स्थिर प्रभा वाले थे–वा0रा0108/32,
यह भीषण युद्ध प्रतिपदा से चला तो मध्य में दिन या रात कभी भी क्षणमात्र के लिए भी इसका विराम नही हुआ –
नैव रात्रिं न दिवसं न मुहूर्तं न च क्षणम् ।
रामरावणयोर्युद्धं विराममुपगच्छति ।।
–वा0रा0यद्धकाण्ड–107/66
इन आठ रातों तक सभी देवों से सुपूजित होकर भगवती चण्डी लंका में ही रहीं ।—–
“तावत्तु अष्टरात्राणि सर्वैर्देवैः सुपूजिता” .
दशमी को रावण का दाहसंस्कार अनुज विभीषण द्वारा किया गया । इसी उपलक्ष में हम सब आज इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास से रावण का पुतला बनाकर उसे जलाकर मनाते हैं । अयोध्या में इस पर्व को अन्य शहरों की अपेक्षा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । जगह -जगह रामलीला का मञ्चन यहां देखने लायक होता है ।
यहां जिस रावण की चर्चा हुई है वह लंकावासी था । उसने मांसाहारी राक्षसों को वैदिक सनातन हिन्दू धर्म के विध्वंस हेतु इस देश में नियुक्त कर रखा था और उन सबको लंका से ही सैन्यबल तथा विस्फोटक सामग्रियों की उपलब्धि कराता रहता था । नासिक-पञ्चवटी तथा बक्सर जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में उनकी छावनियां थीं ।ऐसे अनेक रावणों के देश आज भी हमारे भारत के प्रति यह कुकृत्य कर रहे हैं । इन सबका सफाया रघुकुलभूषण श्रीराम की भांति हमें स्वयं उनकी ही सीमा में घुसकर करना होगा ।
किन्तु आज हमें लंकावासी इन रावणों के साथ ही देशवासी सहस्रों रावणों का सफाया करना है । जो धर्मविरोधियों को तुष्ट करते हुए देश को लूटकर विदेशों में पैसा जमा कर रहे हैं । महिलाओं का अपमान कर रहे हैं और हमारे इतिहास को विकृत कर उसे पाठ्यक्रम में रखवाकर बच्चों को सत्-मार्ग से हटा रहे हैं ।
हम उसी भारत देश के हैं जहां का एक अधम पक्षी गीध भी महिलाओं की गरिमा को समझता था । जिसने एक नारी को विदेशी आक्रान्ता रावण से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया । आज उसी देश के नेता नारियों के साथ जो व्यवहार कर रहे है उसे देखकर हम इन्हें किस श्रेणी में रखें ?
अध्यात्म की दृष्टि से रावण का स्वरूप
रावण मोह = अविवेक का प्रतीक है । रावयति =असत् प्रलापान् कारयति इति रावणः –जो अपने देह में अहंबुद्धि और गेहादि में ममता की स्थापना करके जीव से “मैं मोटा हूं ,धनी हूं,यह घर मेरा है–इत्यादि अनेक प्रकार के मिथ्या प्रलाप करवाता है उस मोह का ही नाम रावण है । अहंकार ही इसका भाई कुम्भकर्ण है। काम–मेघनाद, लोभ -अतिकाय,मत्सर ही महोदर,क्रोधरूपी देवान्तक,द्वेष दुर्मुख,दम्भ खर,कपट अकम्पन ये सब इस मोह रावण के सहायक हैं ।
हे रघुनन्दन ! आप ज्ञानरूपी दशरथ तथा भक्तिरूपिणी कौशल्या के द्वारा प्रकट होकर सपरिवार इस मोह रूपी रावण का विध्वंस करके हम जीवों का संसारसागर से उद्धार करें ।
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar