एक सिद्ध योगी थे । अपनी सिद्धियों के द्वारा अनेक कार्य शीघ्र सम्पन्न कर देते थे । किन्तु उन्हें अपने हृदय में शान्ति का अनुभव नहीं होता था । उन्होंने सोचा जब शान्ति ही नहीं तो इन सिद्धियों से क्या लाभ??
अन्ततः वे अपनी कुटी को छोड़कर निकल गये और रात्रि में एक स्थान पर विश्राम हेतु रुके । वहाँ एक रोगी मलमूत्र से लिपटा लेटा हुआ था । उसने महात्मा को प्रणाम करके कहा कि मैं इतना असमर्थ हूँ कि आपकी उठकर कोई सेवा भी नहीं कर सकता । गाँव के लोग मुझे स्नान भोजन आदि कराके चले जाते हैं । आज स्वास्थ्य अधिक ख़राब है । अब रात्रि हो चुकी है । कोई आयेगा भी नहीं । अतः यहाँ रखें हुए दुग्ध को आप गरम करके पी लें ।
योगी के मन में करुणा जागी और उसने उस वृद्ध को स्नान कराके उसके विस्तर को धो दिया । स्वच्छ आसन लगाकर उसे बिठा दिया और दुग्ध पिलाया । अब योगी का हृदय स्वतः प्रसन्न हुआ उसे अद्भुत शान्ति का अनुभव हुआ । वह उस वृद्ध की सेवा करके उसके पूर्ण स्वस्थ होने के बाद अपने कुटी पर लौट आया ।
लोगों ने पूंछा । महाराज ! आप किस साधना के लिए कहाँ गये थे ? आप तो सिद्ध महापुरुष हैं ।
योगी ने उत्तर दिया कि सिद्धियों को प्राप्त करना उतना कठिन नहीं है । शान्ति मिलना कठिन अवश्य है ।
और इन सिद्धियों से शान्ति भी नहीं मिलती । अतः शान्ति की खोज में गया था और वह मुझे मिल गयी ।
जब लोगों के समक्ष उसने सेवा की घटना सुनाई तब लोगों ने सेवा का महत्त्व समझा ।
निःस्वार्थ भाव से की गयी सेवा सद्यः प्रभाव दिखाती है । हम किसी भूंखे को भोजन कराकर स्वयम् इसका अनुभव कर सकते हैं । इसके विविध रूप हैं । जो व्यक्ति अपने कर्तव्य को निश्छलता भाव से पूर्ण करता है ।
उसे शान्ति का अनुभव होना आश्चर्यजनक नहीं है ।
महायोगी भर्तृहरि कहते हैं कि सेवापरायण यदि मौन रहे तो लोग उसे गूँगा कहते हैं । प्रवचन में पटु हो तो
पागल और बकवासी,पास में रहता है तो धृष्ट, दूर रहे तो मूर्ख, क्षमाशील हो तो डरपोक, असहनशील हो तो निकृष्ट कुल का कहना शुरू कर देते हैं । इसलिए समझिये कि सेवा धर्म कितना कठिन है । यह तो योगियों
के लिए भी अगम्य= करने में दुष्कर है–
मौनान्मूकः प्रवचनपटुश्चाटुलो जल्पको वा, धृष्टः पार्श्वे वसति च तदा दूरतश्चाप्रगल्भः ।
क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते प्रायशो नाभिजातः, सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ।।
–नीतिशतक
पूज्यपाद गोस्वामी जी -“सब ते सेवक धर्म कठोरा ।” से इसी का संकेत किये हैं ।
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक
