नारी का क्या महत्त्व है यह आज का मानव भूल गया है ,किसी की मर्यादा कोई
मर्यादित व्यक्ति ही समझ सकता है । आदिकवि महर्षि बाल्मीकि ने नारी के
महत्व को समझा और वैसे ही अन्य ऋषियों ने भी उदघोष किया की नारी महान है
;जहा नारी की पूजा की जाती है वहाँ देवता प्रसन्न होकर क्रीडा करते है—
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ‘;
–मनुस्मृति-३/५६
मैं आपके समक्ष ये सिद्ध करना चाहूँगा कि वाल्मीकि रामायण मे श्रीराम के चरित की
प्रधानता नही अपितु श्री जानकी जी के चरित की प्रधानता है । इसका कारण सुने —
साहित्यशास्त्र में सबसे उत्तम नायक को धीरोदात्त नायक माना गया है । उसकी सबसे
बड़ी विशेषता – “अविकत्थन:” शब्द से बताई गयी है जिसका अर्थ होता है कि जो न
तो अपनी प्रशंसा करे और न ही सुने ।
पर भगवान श्रीराम जो धीरोदात्त नायको के शिरोमणि माने जाते है जिनका नाम धीरोदात्त
नायकों की गणना में सर्वोपरि है । देखें–साहित्य दर्पण —
“अविकत्थन: छमावानतिगम्भीरो महासत्वः !
स्थेयान्निगूढ़मानो धीरोदात्तो दृढव्रत: !!यथा रामयुधिष्ठिरादि:!”
ध्यातव्य है की वेद प्रभुसम्मित प्रबंध है और रामायण व्यंग्य प्रधान काव्य है | व्यंग्यप्रधान काव्य
को कान्तासम्मित प्रबंध कहा गया है .. श्रीरामायण काँतासम्मित प्रबंधकाव्य
है .. इसमे श्रीराम के नहीं अपितु श्रीजानकीजी के चरित की प्रधानता है |
इसलिए महर्षि वाल्मीकि स्वयं इसका उद्घोष करते हुए कह रहे हैं —
“काव्यं रामायणं कृत्स्नं सीतायाश्चारितम्महत्”।
—बालकाण्ड सर्ग 4 श्लोक७
इस सम्पूर्ण रामायण में श्रीसीताजी के चरित की प्रधानता है इसीलिए एक
विश्रुत व्याख्याकार तनिश्श्लोकिकार रामायण का अर्थ करते हैं – “
“रमाया:=श्रीसीताया: इदम् चरितं इति रामं तस्यायनम् रामायणं =रमा =सीता का जो
चरित है उसे राम कहते हैं और उनका जो अयन अर्थात घर =प्रतिपादक है .उसे
रामायण कहते हैं ।
रामायण में जानकी जी के लिए रामा शब्द प्रयुक्त हुआ है —
“विरराम रामा” –सुन्दरकांड–३६/३१,
अत: सीधे रामाया:–जानक्या: अयनम् =रामायणम् –ऐसा विग्रह करके रामायणम् शब्द सरलतया
बनाया जा सकता है ।
तात्पर्य यह निकला कि रामायण श्रीसीताचारित प्रधान है,रामचरित प्रधान नहीं .अत एव श्रीराम ने इसका
श्रवण किया .!
अन्यथा वे धीरोदात्त नायक होकर इसे कैसे सुन सकते थे ? और अपने चरित को सुनते
तो साहित्यशास्त्र के मर्मज्ञ श्रीविश्वनाथ आदि उनकी गणना धीरोदात्त नायकों में
सर्वप्रथम क्यों करते ?अतः रामायण में नारी चरित की प्रधानता है ।
नारी के महत्व को भारत के पछियों में अधम गीध भी जानते थे । इसीलिए विदेशी
आक्रान्ता रावण से श्रीसीताजी को मुक्त कराने के लिए पक्षिराज जटायु ने
अपने प्राणों की आहुति दे दी ।
किन्तु आज का मानव अपनी जो सोच नारियों के प्रति रख रहा है ! क्या हम उसे मानव
कह सकते हैं? अरे भाई मानव क्या ऐसे लोगों ने तो अपने को गीधों से भी नीचे गिरा
दिया है ! विश्व में जितने भी राष्ट्र हैं वे नारी का सम्मान न जाने तो कुछ समझ में आता
है पर हमारे भारत में जहाँ हम भारत माता की जय बोलते हैं । वहीँ यदि नारी को सम्मान
नहीं मिले तो इससे दु:खद और क्या हो सकता है !!
जय श्रीराम
आचार्य सियारामदास नैयायिक
