शबरीकृत पूजा सर्वश्रेष्ठ

महर्षि वाल्मीकि को श्रीरामचरित का संक्षेप में उपदेश करने वाले ब्रह्मपुत्रदेवर्षि नारद ने सुतीक्ष्ण अगस्त्य शरभंग आदि महर्षियों के आश्रम पर राघव के जाने का उल्लेख किया ।

                 और शबरी जी की कुटी पर जाने का वर्णन करते हुए देवर्षि ने सुस्पष्ट कहा कि रघुनन्दन की सम्यक्-पूर्णूरूपेण पूजा तो शबरी ने ही की–” शबर्या पूजितः सम्यग् रामो दशरथात्मजः ” -वा.रा. बालकाण्ड,1/58,

                        विचारणीय है कि शबरी न तो अगस्त्यादि दुर्धर्ष तपस्वियों की भांति ब्राह्मणीं थीं और न ही वेदमन्त्रों की विदुषी , जाति और विद्या दोनों दृष्टि से वे उन ऋषियों की अपेक्षा न्यून थीं । फिर ऐसी कौन सी विशेषता देवर्षि नारद को उनमें दिखी कि उन्होंने शबरीकृत पुजन को सर्वश्रेष्ठ कहा ?

           इसका समाधान भूषण टीकाकार ने दिया कि शबरी ने ऐसे उपाय का आश्रय ले रखा था जिसके कारण भगवान् श्रीराम को उनकी पूजा सबसे अच्छी लगी । वह उपाय है –” आचार्याभिमान ” अर्थात् गुरुकृपा पर पूर्णतया आश्रित होना ।

            यह गुण ही उन्हें श्रीराम की दीर्घ प्रतीक्षा और सुदृढ चिन्तन में सहायक बना । और उनके द्वारा प्रदत्त फल भगवान् को सबसे अधिक भाये । गुरुभक्ति ही इसमें कारण है ।

              औपनिषद वचन है कि जिसकी अपने इष्टदेव में परा भक्ति है उसकी वैसी ही भक्ति अपने गुरु में होनी चाहिए, उसी के हृदय में उपदिष्ट तत्त्व प्रकाशित होते हैं –

“यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ । तस्यैते कथिता ह्यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः ।।”

              अतएव शबरीकृत पूजा को सर्वश्रेष्ठ भक्ति के आचार्य देवर्षि नारद ने कहा ।

जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar

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