“भ्रातृद्वितीया अर्थात् भैयादूज से नारी विधवा नहीं होती और भाई की आयु बढ़ती है “
भ्रातृद्वितीया–
अर्थ–भ्रातृमङ्गलार्था भ्रातृभोजनार्था वा द्वितीया इति भ्रातृद्वितीया । मध्यपदलोपी कर्म्मधारय समास । कार्त्तिकशुक्लपक्ष की द्बितीया तिथि ।
इसी को यमद्बितीया भी कहते हैं ।
“मध्याह्न- व्यापिनी पूर्ब्बविद्धा चेति हेमाद्रिः ।”
मध्याह्नकाल तक रहने वाली यह द्वितीया बड़ी महत्त्वपूर्ण है ।
आज जो लोग चंद्रदर्शन कर लेंगे उन्हें चतुर्थी के चंद्रदर्शन का कोई कुप्रभाव नहीं पड़ेगा ।
ऊर्ज्जे शुक्लद्वितीयायामपराह्णेऽर्च्चयेत् यमम् । स्नानं कृत्वा भानुजायां यमलोकं न पश्यति ॥
–स्कन्दपुराण, हेमाद्रि
कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया में अपराह्णकाल में यमुना जी में स्नान करके जो यमराज की पूजा करते हैं । वे यमलोक नहीं जाते ।
ऊर्ज्जे शुक्लद्वितीयायां पूजितस्तर्पितो यमः । वेष्टितः किन्नरैर्हृष्टैस्तस्मै यच्छति वाञ्छितम् ॥
–स्कन्दपुराण
इस द्वितीया को प्रसन्न हृष्ट किन्नरों से सुशोभित यम की पूजा और तर्पण होने पर वे उसे वांछित फल प्रदान करते हैं ।
कार्त्तिके शुक्लपक्षस्य द्वितीयायां युधिष्ठिर ! ।
यमो यमुनया पूर्ब्बं भोजितः स्वगृहेऽर्च्चितः ॥
हे युधिष्ठिर! कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को यमुनाजी ने अपने भाई यमराज को ससम्मान भोजन कराया ।
अतो यमद्वितीयेयं त्रिषु लोकेषु विश्रुता ।
अस्यां निजगृहे राजन् ! न भोक्तव्यं ततो नरैः ॥
इसलिए यह यमद्वितीया नाम से संसार में प्रसिद्ध हुई । से राजन् इस दिन लोगों को अपने घर भोजन नहीं करना चाहिए ।
स्नेहेन भगिनीहस्तात् भोक्तव्यं पुष्टिवर्द्धनम् । दानानि च प्रदेयानि भगिनीभ्यो विधानतः ॥
लोगों को स्नेहपूर्वक बहन के साथ से पुष्टिवर्धक भोजन करना चाहिए और बहन को बड़े प्रेम से नाना प्रकार के उपहार भेंट करने चाहिए ।
स्वर्णालङ्कारवस्त्रान्नपूजासत्कारभोजनैः ।
सर्व्वा भगिन्यः संपूज्या अभावे प्रतिपन्नकाः ॥
सभी बहनों को सोने के आभूषण, वस्त्र, अन्न, भोजन से सम्मान करते हुए उनका अर्चन करना चाहिए । यदि बहन न हो तो अपनी मौसी ( माता की बहन ) के साथ से भोजन करना चाहिए ।
यस्यां तिथौ यमुनया यमराजदेवः
सम्भोजितः प्रतिजगत्स्वसृसौहृदेन ।
तस्यां स्वसुः करतलादिह यो भुनक्ति
प्राप्नोति रत्नसुखधान्यमनुत्तमं सः ॥
जिस कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को यमुना जी ने सप्रेम अपने भाई यमराज को भोजन कराया ।उस दिन जो भाई अपनी बहन के साथ से विधिपूर्वक भोजन करता है वह धन धान्य, रत्न और उत्तम सुखों को प्राप्त करता है ।
ब्रह्माण्डपुराण —
या तु भोजयते नारी भ्रातरं युग्मके तिथौ । अर्च्चयेच्चापि ताम्बूलैर्न सा वैधव्यमाप्नुयात् ॥ भ्रातुरायुःक्षयो राजन् ! न भवेत्तत्र कर्हिचित् ॥
हे राजन्! जो नारी अपने भाई को कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को भोजन कराने के बाद उसे पाने खिलाती है । वह विधवा नहीं होती । और उसके भाई की आयु भी कभी क्षय नहीं होती ।
— निर्णयसिन्धु द्वितीय परिच्छेदः ॥
–#आचार्यसियारामदासनैयायिक
