कर्म 2 प्रकार के होते हैँ सामान्य और विशेष ।
सामान्य कर्म मे वे हैँ जो प्रत्येक वर्ण एवम् आश्रम के लिए शास्त्रविहित हैँ ।
इनका पालन उस 2वर्ण एवम् आश्रम के प्राणी को करना ही चाहिए। इसी के
पालन हेतु भगवान् ने अर्जुन से कहा कि अपने वर्णाश्रम धर्म के पालन मे मर
जाना अच्छा है पर दूसरो के धर्मको स्वीकार करना भयावह। है –
स्वधर्मेनिधनम् श्रेय:परधर्मो भयावह: – गीता ।
अब विशेष धर्म सुनेँ – जिसके लिए मानव शरीर मिला है – मोक्षप्राप्ति । उसके लिए
भगवान् का स्मरण कीर्तन आदि आवश्यक है । किन्तु जो गृहस्थाश्रम मे हैँ अर्जुन
की भाँति.उन्हे अपने वर्णाश्रम धर्म का पालन करते हुए भगवान् का जीवन भर स्मरण
करना चाहिए ।
इसी का उपदेश भगवान् ने अर्जुन को गीता मे दिया है – जीवन भर मेरा स्मरण करो और युद्ध करो –
तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च – गीता- 8/7.
यहाँ युद्ध का तात्पर्य क्षत्रिय के विशेष धर्म से है क्योकि क्षत्त्रिय का विशेषधर्म है -शत्रु की सेना पर विजय प्राप्त करके धर्मपूर्वक सबका पालन करना –
निर्जित्य परसैन्यानि क्षतिँ धर्मेण पालयेत् ।
अत: वर्णाश्रमधर्म रूप कर्म और भगवत्स्मरण इन दोनो का समान रूप से पालन ही शास्त्रो का सिद्धान्त है । तभी भगवतप्राप्ति हो सकती है – गीता 8/7.
गीता का सिद्धान्त है – जो करते हो {यत् करोषि=शरीरके निर्वाह के लिए सभी लौकिक कर्म}खाते हो हवन दान तपस्या आदि सभी कर्म मुझे समर्पित कर दो –
यत् करोषि यदश्नासि ..—तत् करुष्व मदर्पणम् –गीता 9/27.
यहाँ भी कर्म के साथ हरिस्मरण है । अत: दोनो ही प्रधान हैँ । अर्जुन केरूप मे सबको प्रभु का उपदेश है । हाँ सन्न्यास जीवन मेँ भगवत्समरण ही प्रधान है क्योकि उसमे लोकधर्मोँ का त्याग है |
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक
