जननाशौच एवं मरणाशौच

सप्रमाण सूतक अर्थात् जननाशौच एवं मरणाशौच का विवेचन

सूतक शब्द आशौच का वाचक है –

”सूतकशब्देन जननवाचिना तन्निमित्तमाशौचं लक्ष्यते । एवं च वदता जननमरणयोराशौचनिमित्तत्वमुक्तं भवति ।”
–प्रायश्चित्ताध्याय-१८,याज्ञवल्क्यस्मृति की मिताक्षरा व्याख्या,
प्राणिप्रसवार्थक सू धातु से “सूतक” शब्द निष्पन्न हुआ है । सू धातु से भाव में क्त प्रत्यय होकर स्वार्थ में कन् प्रत्यय हुआ । सूतक का अर्थ है -”जन्म” । पुन: “सूतकं=जन्म कारणत्वेनास्ति अस्य इति सूतकम् =जननाशौचम् । सूतक शब्द से “अर्शआदिभ्योSच् “-५/२/१२७, सूत्र से अच् प्रत्यय होकर “जननाशौच” अर्थ निष्पन्न हुआ । जननवाची होने के कारण सूतक शब्द से जनननिमित्तक आशौच का ग्रहण किया गया है । यह उपलक्षण है मरणाशौच का ।

-”स्वबोधकत्वे सति स्वेतरबोधकत्वम् उपलक्षणत्वम् ।”

इस प्रकार कहा जाने वाला आशौच जन्म और मरण के कारण होता है ।

ध्यातव्य यह है कि जिस जनन या मरण को हम जान जाते हैं । वही जननाशौच और मरणाशौच का कारण बनता
है । जिस जन्म या मरण का हमें परिज्ञान ही नहीं हुआ । उसका आशौ

Gaurav Sharma, Haridwar

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