श्रीसूक्त मन्त्र – ११

श्रीसूक्त मन्त्र -११ की व्याख्या

ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ||

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||११|

व्याख्या—

          कर्दम-हे भगवती श्री के प्रिय पुत्र कर्दम ऋषे ! कर्दम ऋषि श्री जी के ४ पुत्रों में आते हैं—

“आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः |

ऋषयः श्रियः पुत्राश्च मयि श्रीर्देवी देवता” ||  

«ऋग्वेद, अष्टक-४, मण्डल-५, अध्याय-४, अनुवाक-६»

        आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत ये चारों ऋषि भगवती श्री के पुत्र हैं | मयि — मुझ पर,  सम्भव—आप कृपा करें | अथवा मयि—मेरे घर में, सम्भव—पूर्णतया विराजमान हो जाएँ |

           मयि में औपश्लेषिक आधार अर्थ में सप्तमी विभक्ति है | जैसे “इको यणचि”«पाणिनिसूत्र-६/१/७७» के “अचि” में | उप-समीपे, श्लेषः—सम्बन्धः, उपश्लेषः ( समीप में सम्बन्ध ) तत्कृतः औपश्लेषिकः—जैसे मेरे और घर के बीच में | गंगा के एक भाग में तैरने वाली गौओं के लिए प्रयोग होता है कि “गङ्गायां गावः” | इसी प्रकार घर के एक भाग में स्थित व्यक्ति का संबन्ध घर से है | अतः यहाँ सप्तमी विभक्ति का औपश्लेषिक आधार अर्थ मानकर “मयि” का ‘मेरे अव्यवहित  समीप घर मेरा ही होगा, अतः ‘मेरे घर में’—ऐसा अर्थ किया गया | अर्थात् हे श्रीपुत्र ऋषि कर्दम आप मेरे गृह में निवास कीजिये |

        अथवा –मयि—मुझ पर, सम्भव—आप कृपा करें | क्योंकि भगवती श्री आप जैसे, कर्दमेन—कर्दम ऋषि से, प्रजाभूता—पुत्रवती हुई हैं | अर्थात् आप जैसे पुत्र को प्राप्त कर गौरवान्वित हुई हैं | इसलिए, पद्ममालिनीं—कमलपुष्पों की माला धारण करने वाली, मातरं—अपनी जननी भगवती श्री को, मे— पादारविन्दचंचरीक मुझ शिशु के, कुले—वंश में, वासय—प्रतिष्ठित कर दीजिये |

         पुत्र माँ को अतिशय प्रिय होता है | अतः वह जहाँ रहेगा माँ स्वतः वहां पहुँच जायेगी | जैसे बछड़े के पास गौ पहुँच जाती है या गौ को ले जाने वाले उसके बछड़े को आगे लेकर चलते हैं तो वह स्वयं वात्सल्यवशात् उसका अनुगमन करती है | ठीक इसी प्रकार यहाँ पहले श्रीपुत्र कर्दम से निज गृह में निवास की प्रार्थना की गयी और पुनः उनसे भगवती श्री को घर में निवास कराने की प्रार्थना की गयी |

पुरश्चरण—

        साधक शुद्ध होकर सवत्सा गौ का सम्यक पूजन करने के पश्चात् श्रीं वं इन बीजों से न्यास करके ध्यान करे—

           जैसे बछड़े के साथ गौ प्रसन्न रहती है | वैसे ही पुत्र कर्दम के साथ भगवती श्री प्रसन्न होकर विराजमान हैं | कल्याणकारिणी पद्ममालाधारिणी  वे भगवती श्री पुत्र सहित मेरे गृह में नित्य निवास करें—इस भावना से भावित होकर आराधक “कर्दमेन प्रजाभूता—” इस ऋचा का ३२ लाख जप कमलगट्टे की माला से गौशाला में करे |

        बालक, बालिकाओं को प्रतिदिन दुग्ध भी देना है और पुत्र के साथ सुन्दर वस्त्र वाली महिला का नित्य पूजन करना चाहिए | इस प्रकार जब यह मन्त्र ३२ लाख जप के बाद सिद्ध हो जाता है | तब उस साधक भक्त की वंशपरम्परा अविच्छिन्न चलेगी तथा उसमे निरंतर अभिवृद्धि होगी और अखंडित ऐश्वर्य का लाभ भी होगा | यह मन्त्र संतानपरम्परा तथा विपुल ऐश्वर्य का संवर्धक है |

“कर्दमेनेत्यादिकां तु श्रीसूक्तैकादशीमृचम् |

गावं सवत्सां संपूज्य जपेदक्षरलक्षकम् ||

श्रीं वमिति न्यासः |

ध्यानम्—

सवत्सा गौरिव प्रीता कर्दमेन तथेन्दिरा |

कल्याणी मद्गृहे नित्यं निवसेत् पद्ममालिनी ||

      मन्त्रसिद्धौ तु चिराविच्छिन्नवंशपरम्पराभिवृद्धिरखण्डैश्वर्यलाभश्च भवति | सन्तानसौभाग्यप्रदोयं मन्त्रः | पद्माक्षमालया गोष्ठे प्रजपेत् |बालेभ्यः पयो दद्याद्बालिकाभ्यश्च  प्रत्यहं सुवासिनीमर्चयेत्सपुत्रामिति |

«मन्त्रकल्पार्णव—पृथ्वीधरभाष्य» 

जय श्रीराम 

आचार्य सियारामदास नैयायिक 

Gaurav Sharma, Haridwar

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