स्वस्थ रहने के १५ नियम

स्वस्थ रहने के १५ नियम

१ – खाना खाने के १ घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए!

२ – पानी घूँट घूँट करके पीना है!जिससे अपनी मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जा सके पेट में Acid बनता है और मुँह में छार दोनो पेट में बराबर मिल जाए तो कोई रोग पास नहीं आएगा!

३ – पानी कभी भी ठंडा (फ़्रिज़ का) नहीं पीना है!

४ – सुबह उठते ही बिना क़ुल्ला किए 2-5 ग्लास पानी पीना चाहिए!रात भर जो अपने मुँह में लार है!वो अमूल्य है! उसको पेट में ही जाना ही चाहिए!

५ – खाना जितने आपके मुँह में दाँत है!उतनी बार ही चबाना है!

६ – खाना ज़मीन में पलोथी मुद्रा में बैठकर या उखड़ूँ बैठकर ही खाना चाहिए!

७ – खाने के मेन्यू में एक दूसरे के विरोधी भोजन एक साथ ना करे जैसे दूध के साथ दही प्याज़ के साथ दूध दही के साथ उड़द की दlल!

८ – समुद्री नमक की जगह सेंधा नमक या काला नमक खाना चाहिए!

९ – रीफ़ाइन तेल डालडा ज़हर है!इसकी जगह अपने इलाक़े के अनुसार सरसों तिल मूँगफली या नारियल का तेल उपयोग में लाए!सोयाबीन के कोई भी प्रोडक्ट खाने में ना ले इसके प्रोडक्ट को केवल सुअर पचा सकते है! आदमी में इसके पचाने के एंज़िम नहीं बनते हैं!

१० – दोपहर के भोजन के बाद कम से कम ३० मिनट आराम करना चाहिए और शाम के भोजन बाद ५०० क़दम पैदल चलना चाहिए!

११ – घर में चीनी (शुगर) का उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि चीनी को सफ़ेद करने में १७ तरह के ज़हर (केमिकल ) मिलाने पड़ते है!इसकी जगह गुड़ का उपयोग करना चाहिए और आज कल गुड़ बनाने में कॉस्टिक सोडा (ज़हर) मिलाकर गुड को सफ़ेद किया जाता है!इसलिए सफ़ेद गुड़ ना खाए!प्राकृतिक गुड़ ही खाये!प्राकृतिक गुड़ चाकलेट कलर का होता है!

१२ – सोते समय आपका सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ़ होना चाहिए!

१३ – घर में कोई भी अलूमिनियम के बर्तन या कुकर नहीं होना चाहिए!हमारे बर्तन मिट्टी पीतल लोहा और काँसा के होने चाहिए!

१४ – दोपहर का भोजन ११ बजे तक अवश्य और शाम का भोजन सूर्यास्त तक हो जाना चाहिए!

१५ – सुबह भोर के समय तक आपको देशी गाय के दूध से बनी छाछ (सेंधl नमक और ज़ीरा बिना भुना हुआ मिलाकर) पीना चाहिए!

यदि आपने ये नियम अपने जीवन में लागू कर लिए तो आपको डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और देश के ८ लाख करोड़ की बचत होगी!यदि आप बीमार है!तो ये नियमों का पालन करने से आपके शरीर के सभी रोग (BP, शुगर ) अगले ३ माह से लेकर १२ माह में ख़त्म हो जाएँगे!

Gaurav Sharma, Haridwar

2 Replies to “स्वस्थ रहने के १५ नियम

  1. 1. अजीर्णे  भोजनं विषं  
    (ajīrṇē bhōjanaṁ viṣaṁ) .  
    2.सर्व-रोगहरी क्षुधा 
    (sarva-rōgaharī kṣudhā)
    3. हाला हालाहलोपमा  
    (hālā hālāhalōpamā)
    4. अर्धरोगहरी निद्रा  
    (arddharōgaharī nidrā)
    5. मुद्गदाळी गदव्याळी  
    (mudgadāḷī gadavyāḷī)
    6. भग्नास्थि-सन्धान-करो रसोनः 
    (bhagnāsthi-sandhāna-karō rasōnaḥ)
    7. अति सर्व्वत्र वर्जयेत्  
    (ati sarvvatra varjayēt)
    8. नास्ति मूलं अनौषधं 
    (nāsti mūlaṁ anauṣadhaṁ)
    9. न वैद्य: प्रभुरायुष:
    (na vaidya: prabhurāyuṣa:)
    10. मातृवत् परदाराणि 
    (mātr̥vat paradārāṇi)
    11.चिन्ता व्याधि-प्रकाशाय 
    (cintā vyādhiprakāśāya)
    12. व्यायामश्च शनैः शनैः  
    (vyāyāmaśca śanaiḥ śanaiḥ)
    13. अजवत्  चर्वणं कुर्यात्  
    (ajavat carvaṇaṁ kuryāt)
    14. स्नानं नाम मनःप्रसादनकरं दुस्स्वप्नविध्वंसनं 
    (snānaṁ nāma manaḥprasādanakaraṁ dussvapnavidhvaṁsanaṁ)
    15. न स्नानं आचरेत् भुक्त्वा 
    (na snānaṁ ācarēt bhuktvā)
    16. नास्ति मेघ-समं तोयं  
    (nāsti mēgha-samaṁ tōyaṁ)
    17. अजीर्णे  भेषजं वारि  
    (ajīrṇē bhēṣajaṁ vāri)
    18. सर्वत्र नूतनं शस्तं,  सेवकान्ने पुरातनं 
    (sarvatra nūtanaṁ śastaṁ, sēvakānnē purātanaṁ)
    19. नित्यं सर्व-रसाभ्यास:
    (nityaṁ sarva-rasābhyāsa:)
    20. जठरं पूरयेदर्द्धं अन्नै:
    (jaṭharaṁ pūrayēdarddhaṁ annai:)
    21. भुक्त्वोपविशतस्तन्द्रा  
    (bhuktvōpaviśatastandrā)
    22. वृद्धस्य तरुणी विषं  
    (vr̥ddhasya taruṇī viṣaṁ)
    23. क्षुत् स्वादुतां जनयति 
    (kṣut svādutāṁ janayati)
    24.  शतं विहाय भोक्तव्यं  
    (śataṁ vihāya bhōktavyaṁ)
    25.  चिन्ता जराणां मनुष्याणां 
    (cintā jarāṇāṁ manuṣyāṇāṁ)
    26. सर्वधर्म्मेषु मद्ध्यमां  
    (sarvadharmmēṣu maddhyamāṁ)
    27. निशान्ते च पिबेत् वारि:
    (niśāntē ca pibēt vāri:)
    28. वैद्यानां हितभुक् मितभुक् रिपु:
    (vaidyānāṁ hitabhuk mitabhuk ripu:)
    29. शक्यतेऽप्यन्नमात्रेण  / नर: कर्त्तुं निरामय:  
    (śakyatē’pyannamātrēṇa /  nara: karttuṁ nirāmaya:)
    30.  आरोग्यं भास्करादिच्छेत्  
    (ārōgyaṁ bhāskarādicchēt)
    31.  दारिद्र्यं परमौषधं  
    (dāridryaṁ paramauṣadhaṁ)
    32.  आहारो महाभैषज्यमुच्यते 
    (āhārō mahābhaiṣajyamucyatē)
    33. रुगब्धितरणे हेतुं  /  तरणीं शरणीकुरु !  
    (rugabdhitaraṇē hētuṁ / taraṇīṁ śaraṇīkuru !
    34.  सुहृर्द्दर्शनमौषधं  
    (suhr̥rddarśanamauṣadhaṁ)
    35.  ज्वर-नाशाय लंघनं  
    (jvara-nāśāya laṁghanaṁ)
    36.  पिब तक्रमहो नृप रोगहरं  
    (piba takramahō nr̥pa rōgaharaṁ)
    37.  न श्रान्तो भोजनं कुर्यात्  
    (na śrāntō bhōjanaṁ kuryāt)
    38.  भुक्त्वोपविशत:  स्थौल्यं  
    (bhuktvōpaviśata: sthaulyaṁ)   
    39.  दिवास्वापं न कुर्यातु 
    (divāsvāpaṁ na kuryātu.)
    40.  लाभानां श्रेष्ठमारोग्यं   
    ((lābhānāṁ śrēṣṭhamārōgyaṁ)
    41.  सर्वमेव परित्यज्य  / शरीरं अनुपालयेत्  
    (sarvamēva parityajya / śarīraṁ anupālayēt)
    42. परिश्रमो मिताहारो  /  भूगतावश्विनीसुतौ  
    (pariśramō mitāhārō / bhūgatāvaśvinīsutau
    43. प्राणायामेन युक्तेन  / सर्व-रोगक्षयो भवेत्  
    (prāṇāyāmēna yuktēna /  sarva-rōgakṣayō bhavēt
    44. विना गोरसं को रसं भोजनानां ?
    (vinā gōrasaṁ kō rasaṁ bhōjanānāṁ ?)
    45. आरोग्यं भोजनाधीनं   
    (ārōgyaṁ bhōjanādhīnaṁ)
    46. घृतेन वर्द्धते  वीर्यं 
    (ghr̥tēna varddhatē vīryaṁ)
    47. मित-भोजने स्वास्थ्यं 
    (mita-bhōjanē svāsthyaṁ)
    48. सायं प्रातर्मनुष्याणां  /  भोजनं वेद-निर्म्मितं 
    (sāyaṁ prātarmanuṣyāṇāṁ / bhōjanaṁ vēda-nirmmitaṁ)
    49. चिन्तासमा नास्ति शरीर-शोषणा 
    (cintāsamā nāsti śarīra-śōṣaṇā)
    50.  पृष्ठतोऽर्कं निषेवेत  
    (pr̥ṣṭhatō’rkaṁ niṣēvēta)

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