राम नाम विष्णुसहस्रनाम के समान फलप्रद कैसे ?
अर्थ —वरानने -हे सुमुखि ! मनोरमे –मेरे मन को रमण करने वाली
पार्वति ! अथवा इसे सप्तम्यंत रामे का विशेषण मान लें | अर्थात मन
को रमण कराने वाले राम में मैं राम राम राम ऐसा उच्चारण करके रमण
करता हूँ |
तत् रामनाम –वह राम नाम , सहस्रनाम –और सहस्रनाम , तुल्यं –समान हैं ,तात्पर्य यह कि विष्णुसहस्रनाम का पाठ जो फल देता है ,वह एक राम नाम के जप से प्राप्त हो जाता है |–रामरक्षा स्तोत्र |
इसी प्रकार अन्यत्र भी रामनाम को विष्णुसहस्रनाम के सदृश कहा गया है –
“विष्णोरेकैकनामानि सर्ववेदाधिकं मतम् ।
तादृङ् नामसहस्रेण रामनाम समं मतम् ।।”
–इत्यादि पौराण वचनॉ के साथ पूज्यपाद गोस्वामी जी भी
“सहस नाम सम सुनि शिव बानी ।
जपि जेई पिय संग भवानी ||”-मानस
में लिखते
हैं । यहाँ पर निम्नलिखित शंका उत्पन्न होती है –
शंका
–रामनाम विष्णुसहस्र नाम के तुल्य फलप्रद नही हो सकता ,
क्योंकि विष्णुसहस्रनाम में भी राम नाम आया है –
“रामो विरामो विराजो मार्गो नेयो नयोSनयः ” –५६,
इसी राम नाम का पाठ रामनाम का फल दे देगा अन्य ९९९ नाम अपना
अपना पृथक फल देंगे तो रामनाम से विष्णुसहस्रनाम का फल कैसे प्राप्त
हो सकता है ? सहस्र नाम का फल तो अधिक ही हो जाएगा |
समाधान
–शंका बिलकुल ठीक है | पर यह विष्णुसहस्रनाम के श्लोकों पर ध्यान न देने से उत्थित हुई है | कैसे ?
देखिये -विष्णुसहस्र नाम के आरम्भ में पितामह भीष्म प्रतिज्ञा कर रहे
हैं कि मैं इस सहस्रनाम में भगवान् के गौण नामों का कथन करूंगा –
“यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः ।
ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये ।।”
-सहस्रनाम -१३,
यहाँ गौणानि शब्द से पितामह यह स्पष्ट कर रहे हैं कि मैं इसमें उन नामों
को कहूंगा जो भगवान के गुण द्वारा उनका बोध करा रहे हैं , साक्षात् अभिधा शक्त्या नही | अतः इसमें प्रविष्ट रामनाम ” रमयितृत्व ” गुण द्वारा भगवान का बोधक है ,साक्षात् अभिधा शक्त्या नही |
किन्तु विष्णुसहस्रनाम से बहिर्भूत जो राम नाम लिया जाता है , वह अभिधा शक्ति से श्रीराम का बोधक होने के कारण गौण नहीं अपितु प्रधान है –
“रमन्ते योगिनोSनन्ते सत्यानन्दे चिदात्मनि ।
इति रामपदेनासौ परम् ब्रह्माभिधीयते ” ..–रामतापिन्युपनिषद्,
यहाँ योगिजन के रमण का आश्रय जो सच्चिदानन्द पर ब्रह्म कहा गया है
वह ” राम ” इस पद से अभिधा शक्ति से कहा जाता है | अतः विष्णुसहस्रनाम से बहिर्भूत राम नाम साक्षात पर ब्रह्म का अभिधायक होने से प्रधान है और सहस्रनाम के अंतर्गत पठित राम नाम गौण है |
उससे प्रधान राम नाम का फल नही मिल सकता | वहां के सभी नाम मिलकर ही राम नाम की समता कर सकते हैं | प्राचीन प्रतियों में सहस्रनामतातुल्यं पाठ है जिसका अर्थ होगा कि राम नाम विष्णुसहस्रनाम
के समूहों के सदृश है |
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक

Gaurav Sharma, Haridwar