।।महाराज रघु और ढूँढा राक्षसी।।
भविष्यपुराण के उत्तरपर्व के १३२वें अध्याय में फाल्गुन पूर्णिमाव्रत की कथा का वर्णन आया है। भगवान श्रीकृष्ण ने पार्थ युधिष्ठिर से कहा– सत्ययुग में महाराज रघु हुए थे जिनके कुलपुरोहित ब्रह्मर्षिवसिष्ठ थे। महाराज रघु का यश फैला था, पर अकस्मात् एक ढूंढा नामक राक्षसी राज्यमें आ कर छोटे छोटे बच्चों को विपत्तिमें डालने लगी। लोगों ने महाराज से इस विपत्तिका उल्लेख किया।
महाराजने ब्रह्मर्षि वसिष्ठ से इस रहस्य के बारेमें पूछा। ब्रह्मर्षि नेकहा–असुर राज माली की पुत्री ढूंढा ने तपस्याकर भगवान शिव से अवध्य होने का वरदान प्राप्त किया। मनुष्यऔर शस्त्रास्त्रों से नहीं मरोगी पर छोटे छोटे बालक और उन्मत्त लोगों से तुम्हे जीवनका भय बना रहेगा ऐसा कहकर भगवान शिवगायब हो गए। अतः महाराज फाल्गुन पूर्णिमा की सन्ध्या में लड़के लोग लकड़ियों को एकत्रित कर उन्मत्त आचरण करते हुए उस ढेर में आग लगा दें।अग्निकी तीन परिक्रमा कर रक्षोघ्न मन्त्र से हवन किया जाए तो वह राक्षसी निर्बलहो कर मर जाएगी–
अदृष्टघातै: डिम्भानाम् राक्षसी क्षयमेष्यति।।
महाराज रघु ने महर्षि के कहे अनुसार सबकुछ वैसा ही किया जिससे राज्यमें छोटेछोटे बालकोंका जीवन निरापद हो सका।फाल्गुनपूर्णिमा के संध्याकाल में रक्षोघ्न मन्त्रों से हवन करने से छोटे बालक निरोग और भय मुक्त रहते हैं।
रक्षोघ्न मन्त्र– किसी भी यज्ञ, अनुष्ठान की रक्षा के लिए रक्षोघ्न मन्त्र काअनुष्ठान किया जाता है।इसमें अग्नि देवता प्रमुख हैं। “ॐ रक्षोहणं वाजिन” आदि मन्त्र प्रसिद्ध हैं।व्रतराज की टीका में पन्द्रह रक्षोघ्न मन्त्र दिए गए हैं।
बालकों की रक्षा के लिए दुर्गासप्तशती में भी मन्त्र प्राप्त है–ॐ बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम्। संघातभेदे च नृणाम् मैत्रीकरणमुत्तमम्।।
जो राष्ट्र के भविष्य बच्चोंको मारेगा या उन्हें हानि पहुचायेगा उसे तो मरना ही होगा चाहे वह ढूंढा हो या बुआ होलिका। शूर्पणखा को यह छूट कैसे दी जा सकती है कि वह सीता को त्रास दे, भयभीत करे,अपमानित करे।
***?।। होली,वसन्तोत्सव के शुभप्रभाव।।??***
*?–फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि में रात्रि में होलिका दहन किया जाता है और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन रंगसे वसंतोत्सव मनाया जाता है। होलिका दहन की एक कथा प्रह्लाद और उनकी बुआहोलिका सेजुड़ीहैऔरदूसरी कथा महाराज रघुऔर राक्षसी ढूंढा से जुड़ी हुई है।दोनोंकथाओं में बालक के ऊपर होने वाले अत्याचार और उनका समग्र निवारण ही स्थायीभाव में है।
*?– होलिका पूजन– ढूंढा राक्षसी की तृप्ति के लिए और बच्चों पर उसका आक्रमण न हो इसके लिए अत्यंत प्राचीनकालसे होलिकाकी पूजाकी जातीहै।इसमें संकल्प लिया जाता है–ढूंढानामक राक्षसीके प्रीत्यर्थ,उसकी पीड़ा से मुक्ति के लिए होलिका पूजन कर रहा हूँ।
गोमयपिंड(उपल,चीपरी, गोइठा,कंडा)तथा लकड़ी केसमूह को एकत्रित करउसकी पुष्पादि सेपूजा करउसमें कर्पूर याघृतसेआग लगातेहैं।होलिकायै नमःबोलते हुएउसे प्रणाम करते हैं और तीन फेरे लगाते हैं। इसके बाद शास्त्र आदेश करता है कि आज तुम्हारे मन में जो भी आरहा हो वह गावो, हंसो, गप्प लडावो, स्वेच्छा से निःशंक हो कर अपने मत का प्रकटीकरण करो–
तमग्निम् त्रि: परिक्रम्य गायन्तु च हसन्तु च।
जल्पन्तु स्वेच्छया लोका निःशंका यस्य यन्मतम्।।
ज्योति:निबन्ध ग्रन्थमें लिखाहैकि तुरही बजाकर होलिका की पूजा की जाती है। होलिका में घी,दूध का छीटा डाला जाता है।नारियल,अनार,संतरा का फल डाला जाता है।रात में गीत,वाद्य,नृत्य किया जाता है।काम के आख्यान कारक शब्दों का प्रयोगकिया जाता है।भीतर के विकारों को बाहर किया जाता है।
*?– होलिका बाद का कृत्य–
१-होलिका का भस्म धारण किया जाता है।२-आम्रमंजरी भक्षण किया जाता है।चांडाल आदिको गले लगाया जाता है।३–उबटन होलिका पूर्व और पश्चात लगाया जाता है।दूसरे दिन रंग खेला जाता है।४– फाग गाया जाता है।५–
गीत नृत्य किया जाता है।६–कच्चे अन्न को भूनकर खाया जाता है। ७– सायं काल नवीन वस्त्र धारण कर बड़ों , छोटों को अबीर गुलाल लगाकर प्रणाम, आशीर्वाद लिया दिया जाता है।
*?-होलिका का संदेश–
सबसे गले मिलो। बच्चों को सुरक्षित रखो। गीत,नृत्य, वाद्य,नैवेद्य,नवान्न, नव वस्त्र, रंग-गुलाल का आज जम कर प्रयोग करो।एक दिन मन के भड़ास को निकाल लो और वर्ष पर्यन्त संयमित सामाजिक बने रहो।
?जो मर गया सो तर गया।
जो जिये सो खेले फाग।?
सृष्टि में समय का प्रवाह निरन्तर उत्सव धर्मी है।होलिका की चिता का भस्म धारण कर मस्त हो गाना बजाना यही संदेश देता है।
होली और वसन्तोत्सव की आत्मीय शुभ कामनाएं।
जीवन को वसन्त से सजाए रखिये।
ताल लय से वाद्य को बजाए रखिये।।

Gaurav Sharma, Haridwar
Atyadhik ruchikar guru Ji