- गुरुपूर्णिमा
गुरु का महत्त्व और गुरु को पाप ,
हमारे शास्त्रों में गुरु के महत्त्व को बतलाते हुए कहा गया है कि
“ आचार्यवान् पुरुषो वेद “—छान्दोग्योपनिषद्-६/१४/२,
गुरु को प्राप्त किया हुआ प्राणी ही परमात्मा को जान सकता है |यह है सद्गुरु का महत्त्व |
भगवान् श्रीकृष्ण ने सखा उद्धव से कहा कि “ आचार्य रूप में मुझे ही समझना चाहिए ,अतः मरणधर्मा मनुष्य की बुद्धि रखकर उनमें दोषदृष्टि न करे,क्योंकि गुरु सर्वदेवमय होते हैं | अतः गुरु का कभी अपमान नही करना चाहिए |
“ आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हिचित् |
न मर्त्यबुद्ध्यासूयेत सर्वदेवमयो गुरुः “||
—भागवतपुराण,११/१७/२७,
इसलिए गुरुपूर्णिमा को हम अपने गुरुजनों की सद्भाव पूर्वक पूजा करते हैं |किन्तु इतने प्रभावशाली गुरु भी यदि शिष्य को सदुपदेश द्वारा कुमार्ग से नही हटाते तो उन्हें शिष्य से किया गया पाप लगता है |
मंत्री द्वारा किये गए पाप राजा को तथा पत्नी द्वारा किये गए दुष्कृत का फल पति को प्राप्त होता है | इसी प्रकार गुरु को भी शिष्य से किया पाप लगता है–
-“ मन्त्रिपापं च राजानं पतिं जायाकृतं तथा |
तथा शिष्यकृतं पापं प्रायो गुरुमपि स्पृशेत् “||
–यहाँ पर ” प्रायो ” शब्द का प्रयोग है , जिसका अर्थ है –“ प्रायः “ | इस शब्द से यह बतलाया जा रहा है कि यदि गुरु ने ३ बार शिष्य को समझाया कि “ ऐसा कार्य मत करो “| फिर भी यदि शिष्य गुरु के वचनों का अनादर करते हुए अनुचित कार्य करता है तब शिष्य से किये गए पाप गुरु का स्पर्श नही कर सकते—
“ गुरुस्त्रिबारमाचारं बोधयेत् कुलनायिके |
न गृह्णाति हि शिष्यश्चेत् तदा पापं गुरो र्नहि ||
–कुलार्णवतन्त्र,शिवार्चनचन्द्रिका,>
जय श्रीराम
#आचार्यसियारामदासनैयायिक
