Post Views: 1,542 मूलाधार-चक्र ======== मूलाधार-चक्र वह चक्र है जहाँ पर शरीर का संचालन वाली कुण्डलिनी-शक्ति से युक्त ‘मूल’ आधारित अथवा स्थित है। यह चक्र …
Author: Gaurav Sharma
Post Views: 3,948 शत्रुबाधा नौकरी ग्रहदोष के लिए बजरंग बाण का अचूक प्रयोग श्रीरामः शरणं मम बजरंग बाण बजरंग बाण का पाठ रात्रि ११ बजे …
Post Views: 24 माता लक्ष्मी ने रक्षाबंधन की परंपरा चलायी ऐसे हुई थी रक्षाबंधन की शुरुआत, माता लक्ष्मी ने बांधी थी बलि को राखी रक्षाबंधन …
Post Views: 64 सप्रमाण सूतक अर्थात् जननाशौच एवं मरणाशौच का विवेचन सूतक शब्द आशौच का वाचक है – ”सूतकशब्देन जननवाचिना तन्निमित्तमाशौचं लक्ष्यते । एवं च …
Post Views: 73 करमाला की विधि तथा शक्ति एवं देवों के जप में करमाला का रहस्य करमाला की विधि तथा शक्ति एवं देवों के जप …
Post Views: 271 सर्वविधरक्षाकारकं भूतप्रेतग्रहादिसकलविघ्नविध्वंसकं ब्रह्माण्डपुराणोक्तं श्रीमदेकमुखिहनुमत्कवचम् अतिप्रभावशाली यह एकमुखिहनुमत्कवच भूतप्रेत ग्रह एवं रिपुजन्य समस्त बाधाओं का विध्वंसक है | इसका श्रद्धा से गुरु के …
Post Views: 270 भागवतोक्तं सविधि नारायणकवचम् विधि –स्नानादि से निवृत्त होकर उत्तर दिशा में मुख करके बैठ जाय | तत्पश्चात ३ वार आचमन करके आसन …
Post Views: 269 इस कवच के करन्यास एवं हृदयादिन्यास में “अञ्जनीसुतगर्भाय” और किसी प्रति में “अञ्जनीगर्भाय” पाठ मिलता है । जो अर्थ की दृष्टि से …
Post Views: 273 श्रीमदाञ्जनेय भुजङ्गप्रयातस्तोत्रम् मनोजवं मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यम् श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ बुद्दिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वं अरोगता । अजाड्यं वाक्पटुत्वं …
Post Views: 236 ||अथ श्रीरामसर्वस्वस्तोत्रं प्रारभ्यते || रामो माता मत्पितारामचन्द्रो भ्राता रामो मत्सखा रामचन्द्रः । रामः स्वामी राम एवार्थदाता रामादन्यं नैव जाने न जाने ॥ …
Post Views: 20 धन की परिभाषा सामान्यतः: पैसे से करते हैं । पर धन वर्ण और आश्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार का है । ब्रह्मचारी …
Post Views: 19 आसक्ते: कारणं निवारणञ्च-आचार्य सियारामदास नैयायिक संसार में जीव उसी समय से आत्मबल खोने लगता है । जब उसकी आसक्ति परमात्मा से भिन्न …
Post Views: 56 बालकरूप भगवान् के स्वरूप का ध्यान अतिलाभप्रद है; क्योंकि ध्येय के गुण ध्याता में आते हैं । और शिशु स्वयं निर्मल होता है । …
Post Views: 105 अर्जुन उवाच कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन ।इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥४॥ व्याख्या – पूर्व में अर्जुन ने कहा था कि इस …